बचपन स्कूल और उद्देश्य
बचपन शिक्षा और स्वप्न
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हमारे समय में
ज्यादा मौके नहीं थे,
एक अध्यापकों का समूह
जो मेहनत करके
संस्कार भरते थे.
स्कूल के द्वार पर लिखा होता था
शिक्षार्थ आओ…सेवार्थ जाओ.
कोई दूर दूर तक
डॉक्टर
इंजीनियर
वकील नहीं होते थे,
दो ही विकल्प थे.
एक अध्यापक
दूसरा फौज
तीसरा क्लर्क
विज्ञान की सुविधा बतौर
एक हड्डियों का ढांचा
जो गिनती में 206 भी पूरी नहीं होती थी,
भौतिकी और रसायन विज्ञान में
इंद्रधनुष बनाती प्रिज्म
कुछ परखनली
जो दिखाने भर के लिए थी.
आपको कौन सा संकाय चुनना है.
आपके मार्क्स प्रतिशत तय करते थे,
मैंने कोई सपना नहीं देखा,
तो पूरा कैसे होता.
परीक्षा में अच्छे मार्क्स प्रतिशत
बाधक बने.
और सरकारी नौकरी की इच्छा थी,
जो की मिली नहीं.