बचपन सी सौगात न कोई
झूठी मूठी बात न कोई
बचपन सी सौगात न कोई
सच के आगे झूठ कपट की
होती है औकात न कोई
जिसमें सपने देख न पायें
होती ऐसी रात न कोई
पतझड़ में जो गिरा नहीं हो
पेड़ों का वह पात न कोई
जिसका हल हम ढूंढ न पायें
ऐसे तो हालात न कोई
जाने कब क्या कर बैठेगी
मानव जैसी जात न कोई
चोट बहुत हैं दुनिया में, पर
अपनों जैसी घात न कोई
जीना चाहो अगर शान से
माँगो तुम खैरात न कोई