बचपन वाली बात
जिंदगी की भागदौड़ से कुछ वक्त निकालते हैं,
चलो आज यादों की आलमारी खंगालतें है,
उस बचपन वाली दराज से कुछ लम्हें चुनते हैं
वो कहानियाँ जो दादी नानी ने सुनायी थी कभी
कुछ पल ही सही वहा भी ठहरतें है ।
कुछ याद आया जब हमें इनकी कहानियों मे
इतना यकीन हुआ करता था ।
जब टाफियां हमारी पहला मुहब्बत थी और क्रश
वो लाल पैकेट वाला नमकीन हुआ करता था ।
जब कुछ खाने की चीज लाते हुए
कभी कोई मांग लिया करता था ,
वो तो खत्म हो गया बस यही जवाब हुआ करता था।
जब फाल्गुन का महीना आते ही दुश्मनी भी
दोस्ती मे तब्दील हो जाती थी,
जब हर त्योहार होली हो या दिवाली साथ मनायी जाती थी।
जब हम मन्दिर शौक से जाया करते थे,
पर मजारों पे भी शीष झुकाया करते थे।
अच्छे तो थे न जब हम समझदार नहीं थे पर इन्सान थे,
आज वक्त बदला हम समझदार है हम हिन्दू हैं वो मुसलमान हैं।
हमारे हिस्से मे श्मशान और उसका कब्रिस्तान है।
आज जब सियासत के आकाओं का चुनावी विगुल बजता है
तो हम बट जातें है मुफ्तखोरी, धर्म और जातों में
आखिर क्यू हर बार आ जातें है हम इनकी बातों में।
क्यू नहीं करते याद हम बचपना जब हम सभी एक हुआ करते थे,
इक दूसरे के खुशी या गम मे शरीक होते थे और इरादें नेक हुआ करते थे।
©अrun ? © अरुण कुमार अरु