बचपन वाली दुर्गाष्टमी ?
#छोले_पूड़ी_सी_नमकीन_हलवे_सी_मीठी_यादें
“तेरे पास कितने रुपये इकठ्ठे हुए”
“19”
हैं?????? :o
“तो मेरे पास 18 कैसे हैं”…. :/
कौनसी ज़ालिम आंटी ने नहीं बुलाया मुझे????
मन में से सवाल पूरा दिन खनकता था उन सिक्कों की तरह…
50 पैसे,1 रुपैया और किस्मत रहीस होती तो वो 2 रुपए का गुलाबी सा नोट…
अगर नई नवेली गड्डी में से कड़कता नोट मिल जाता तो ख़ुशी युँ होती जैसे 100 रुपये का सौदा कर लाएंगे इससे….और कहीं लाल सुनहरी चुन्नी,प्लेट, मिल जाती तो हम देवी की तरह पूजी जाने वाली कंचकों को वो आंटी खुद “देवी” से कम न लगती थी…. :D
सिक्कों का ये हिसाब किताब सुलझता नहीं के कहीं से आवाज़ आ जाती आओ “कंचकों” जल्दी आ जाओ.. और मन में एक और सिक्का बढ़ जाने की ख़ुशी फिर से पंख फैला लेती… :)
पेट चने पूड़ी हलवे से ऐसा भरा हुआ के एक चना भी खाया तो पेट फुट जाए और न खायें तो रुपैया छूट जाए… ;)
“आंटी हम दोनों एक में ही खा लेंगे” कह कर दिल और पेट का वजन एडजस्ट करने की कोशिश कर लेते थे…. ;)
और वो लड़के जो हर रोज “तू लड़की मैं लड़का” की लड़ाई रोज हमसे लड़ते थे आज के दिन पक्का यही सोचते होंगे “हम भी लड़की होते तो…….” :D
पर हाँ एक लकी बॉय भी तो होता था जो “लांगरा” होकर भी हीरो से कम महसूस नहीं करता था खुद को और बाकी लड़कों की नज़र में “ऐ विल्लन”… :D
वो दो दिन बस हमारे होते थे “सिर्फ हमारे”
आज सिक्के बड़े नोट और गिफ्ट बन गए पर “बचपन और कंचक का मन” वही है :)
वक़्त कितना गुजर गया जिस वक़्त ये चना पूरी खा रही होती थी आज बना रही होती हूँ…..
पर हर बात का अपना अपना सुख है… :)
“इंदु रिंकी वर्मा” ©
#दुर्गाष्टमी #रामनवमी #छोले_चना_पूड़ी_और_हम
#बचपन_यादें