“बचपन याद आ रहा”
“बचपन याद आ रहा”
जीवन में चेहरे हसने के लिए है,
पर हमारे चेहरे उलझन में दिख रहे हैं।
हमारी आँखे जीवन के हर पल को देख रहे हैं,
लेकिन चेहरे की उलझन उसे पल पल रुला रहे हैं।
जीवन के हर बोझ कंधे पर लिए घूम रहे हैं,
अब तो हर सपनों की दुनिया में खुशियाँ ढूँढ रहे हैं।
अभी तक नहीं मुक्त हुआ हूँ अपने जिम्मेदारियों से,
अब भी अपना सुनहरा बचपन याद आ रहा है।
सबके चेहरे पर मुस्कान थिरक रहा था,
जब मैं घर के आँगन में खेल रहा था।
जब माता-पिता को देखता अपना बोझ बढ़ रहा था,
युवा अवस्था में प्रवेश करते ही संघर्ष तेज हो रहा था।
मुझे आज भी अपना सुनहरा बचपन याद आ रहा था
रचनाकार ✍️ : संदीप कुमार
(स्नातकोत्तर, राजनीतिक विज्ञान, धनबाद)