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6 Jun 2022 · 1 min read

बचपन में थे सवा शेर जो

बचपन में थे सवा शेर जो
यौवन आते वो शेर हो गए
सच्चाई इन शेरों की सुनिए
शादी होते सब ढ़ेर हो गए
बचपन में थे………
जाने कैसा जीवन आया
भूले अपना और पराया
बीबी के आधीन हो गए
भूले हैं अपना मन भाया
माँ के लिए बादाम थे जो
अब झाड़ी के बेर हो गए
बचपन में धे………
फूलों के जैसा था बचपन
भंवरे की भांती था यौवन
आज सभी हैं यूँ मुरझाए
ज्यूँ पतझड़ में पेड़ लताएं
पहले जो थे गुलाब बसंती
वो सुखी हुई कनेर हो गए
बचपन में थे……….
जीवन की कड़वी सच्चाई
“विनोद”रह गई है परझाई
बचपन यौवन कहीं नहीं है
मैं तुम वो हम कहीं नहीं हैं
जिम्मेदारियाँ पड़ी हैं ऐसी
जो थे कभी दलेर खो गए
बचपन में थे……….
…………………(अनंत)

स्वरचित:-विनोद चौहान

5 Likes · 2 Comments · 365 Views
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