“बचपन, बुढ़ापा और जवानी”
वो खुशियों के दिन, थे बचपन के संग.
कभी रोते हुये मुस्कुराना, कभी मुस्कुराकर चुप हो जाना.
वो शरारती अन्दाज, माँ की वो प्यारी सी डाट.
फिर बचपन गया जवानी आयी, अनुशासन न पकड़ जमायी.
बचपन की यादे आये, कैसे-कैसे दिन बिताये.
एक ठोंकर न हमें जगाया,घर गृहस्थी मे पैर जमाया.
जवानी गुजरी, बुढ़पा छाया,
शांत जीवन हमने चाहा.
फिर कदमो न छोड़ा साथ,
गुजरी बाते, फिर आयी याद.
आँखो मे आँसू आने लगे, फिर जिंदगी से हाथ छुड़ाने लगे.
आखिर अंत मे हमने जानी, जीवन की है तीन कहानी.
बचपन बुढ़ापा और जवानी.