बचपन… बचपन…
माँ का सुबह जल्दी उठाना,
हमारा बस पाँच मिनट… पाँच मिनट…,
कह कर फिर से सो जाना,
घड़ी के काँटे का अपनी गति से बढ़ना…
एक दम से हमारा उठना
और दौड़ कर बाथ रूम की ओर बढ़ना,
झटपट तैयार होना…
उंगलियों पर स्टडी पीरियड गिनना…
माँ का दूध का गिलास हाथ में थमाना…
पीते-पीते मुँह पर मूछों का बनना…
बड़ा याद आता है… .
बड़ा याद आता है… .
गुँथी चोटियों के लाल- पीले रिब्बनों का दिखना…
अध्यापकगण से स्पोर्ट पीरियड की माँग करना…
विज्ञान के पीरियड में शिक्षक का मैदान में लेकर जाना..
खेल खेल में गुरुत्वाकर्षण का पाठ पढ़ाना…
अंताक्षरी का खेल खिलाकर…
हिंदी के अलंकार समझाना..
नोटबुक चेकिंग पर तबीयत खराब होने का बहाना बनाना..
प्रश्न पूछने पर दूसरों की ओर तकना,
पेपर की पूछने पर बढ़िया बताना..
नतीजा आने पर दादी- नानी के पीछे छिपना।
बहुत याद आता है…
बहुत याद आता है… .
आज हम जीवन में इस कदर आगे बढ़ गए… .
कमाने की धुन जो लगी खुद को ही भूल गए।
भूले बिसरे जब दोस्तों से मिले,
ना कॉलेज की चर्चा, ना नौकरी का रोना..
बस स्कूल के ही अफसाने छिड़े..
बहुत याद आता है वो बचपन
जिसमे न थी कोई चिंता न फ़िकर..
काश! हम फिर से बच्चे बन जाते..
काश! हम फिर से बच्चे बन जाते..