बचपन खेल रहा है
मेरे घर की दीवारे रंगीन है…
अभी बचपन खेल रहा है, तरंगों से
ये रंगों से खेलने की शौकीन है…
लोग कहते है रोक लो, थोड़ा टोक लो…
अरे अभी इनका ये बचपन है, चित्रकारी का,
ये सब छोटे शैतान है, अभी नमकीन है…..
मेरे घर की दीवारे रंगीन है…
मैंने देखा ये कुछ अटपटी सी रेखाएँ है…
अरे अभी तो सब अक्षरों में बदलनी है इनको,
तनहा ये उनकी उम्मीद की परछाई है,
बस घर की छत, छुने की शौकीन है….
मेरे घर की दीवारे रंगीन है…
क्या तुमको नज़र नहीं आती, ऊपर जाती लकीरे,
अरे ये सीढियाँ है आकाश की, इनके नन्हें पाँव की,
और कुछ लकीरें तय करती, क्रांति शहर और गांव की,
बचपन सुनती है कहानी पेड़ और उसकी छाँव की,
मेरे घर की दीवारे रंगीन है…
बचपन को उनकी उड़ान उड़ने दो,
दीवारे गन्दी फिर से रंगीन हो जाएगी,
ये पल जो चला गया, खाली मंज़र सा,
तो बस रह जाओगे ज़िंदगी में तनहा,
तन्हाई तुम्हारी शौकीन हो जाएगी।
मेरे घर की दीवारे रंगीन है…
आपका अपना दोस्त।।। तनहा शायर हूँ