बचपन को तरोताजा करती कविता
चिडियों की मधुर चहक सुन,
हम रोज सुबह उठ जाते थे l
पगडंडी राहों पर चलकर,
हम नदी नहाने जाते थे ll
चंदा को मामा कहते थे,
सूरज को काका कहते थेl
हम पेड़ लगाया करते थे,
पीपल की पूजा करते थे ll
बैलों की गाड़ी चढकर हम,
कहीं सैर में जाते थे l
नदी किनारे अमराई में,
पुरवा संग गीत गाते थे ll
गेहूँ सरसों के खेतों में,
हम तितली पकड़ा करते थे l
कोयल की मधु वाणी सुन सुन,
बागों में खेला करते थे ll
सुनते थे परियों कि कहानी,
हम दादा के पास बैठकरl
याद हमें आते है यारों,
कहाँ गया वो माटी का घरll
अम्बर जैसा मन था मेरा,
मंदिर जैसा दिल था पावनl
अब तो है जीवन में खटपट,
हाँ बीत गयें नटखट बचपन ll