बचपन के मुस्कुराते जिद्दी चेहरे
वो मुस्कान चेहरे की,
वो गर्मी के छुट्टियों का इंतजार,
दादी के हाथ का पाना पीने का अंदाज ,
लू चलने वाली पहर को महसूस किया था हमने,
वो चोरी का आम,फिर पकड़े जाने का डर,
मां के मार से बचाने के लिए दादी के अंचल में छिपना
दीदी से बचाने की गुहार लगाना,
वो बंदरों की तरह उछल खुद करना ,
पापा का डर सताए रहना,
वो बचपन की याद, दी को चिढ़ाना दादी है मानती मुझे,
फिर दी का दादी से रूठ जाना,
दादी का यूं कहना है पाया उठाया अनन्त इन गलियों से,
फिर क्या? रोते हुए रूठकर सो जाना,
खुद से बाते करते हुए खुद खो जाना,
फिर मनाते मनाते आंखे नम हो जाना,
यह कहना जिद्दी जिद करते है पाने की,
न की रोने की,
वो मां का अपने हाथों से खिलाना,
वो कभी अपनो से ज़िद करना ,
फिर ज़िद पूरी होने का इंतजार करना,
कब हम बढ़ने लगे अपनो से अलग रहने लगे।
पहले आए खिलौने के टूटने पर रोना,
अब टूटे रिश्ता पर मुस्कुराना।
पहले लोगो के रूठ जानें पर उदास बैठे रहना
अब ज़िंदगी के रूठ जानें पर आगे बढ़ते रहना,
पहले कष्ट पड़ना भाग खड़े होना,
अब उन कष्टों से लड़ते रहना,
ख्वाहिसे थी बड़े होने की,
अब उन ख्वाहिशों पर अम्ल नहीं,
सोच के लगता है, अधूरे रह गए,
बचपन का जाना, सारी बातें जाना,
सीखा चलाना इन रह पर
तूने ही जिद्दी पर्वत बनाया।
क्या अब भी याद रह जायेगा बचपन?