बचपन के दिन
कोई हमसे पूछे तो
की हम बचपन में कैसे थे
तो हम जवाब देंगे
की हम ऐसे थे|
बात सिर्फ इतनी सी थी
की हर जगह मिट्टी मिल जाती थी
और उसमे पानी डालकर
रसोई बना ली जाती थी|
मैथ्स सीखने के लिए
byjus नहीं थे तब
इसलिए मिलकर
स्टेपू खेला करते थे सब|
छोटी छोटी बातों पर
हमारी पार्टी हो जाया करती थी
कभी १० रूपए के चिप्स खाते
कभी मम्मी maagi बनाया करती थी|
5 बजे का तो सभी को
बेसब्री से रहता था इंतज़ार
क्यूंकि उसी टाइम तो नीचे जाने का
मौका मिलता था यार|
पेड़ों पर चड़करहमने
कच्चे अमरुद भी खाए
मधुमखियों से बचकर
शेह्तुत भी चुराए|
फूल तोड़कर हमने
मालाएं भी बनाई
फिर उन्ही मालाओं से
अपनी छोटी भी सजाई|
मम्मी पापा से छिपकर
झूले भी झूले
लेकिन लाख कोशिश के बाद भी
आखिर में पकडे ही गए|
आर्टिस्ट तो हम इतने बड़े थे
की फाइल तो छोडो
दीवारों और मेजों पर भी
हमारे ही किस्से थे|
कॉपी के लास्ट पेज पर
हमारी drawings होती थी
साथ में किताबों में
लड़कों की तस्वीर पर बाल
और लड़कियों की तस्वीर पर मुछे भी|
छोटे होने के कारण
टॉफ़ी चॉकलेट भी बहुत खाए
और ऐसा मज़बूत पाचन हमारा
की सारी चीजें पचाए|
न कोई डर, न कोई तनाव
उन दिनों में थे
तभी तो कहते हैं
वो दिन भी क्या दिन थे |
इतने मज़े तो शायद
पूरी ज़िन्दगी में कोई न करे
दुनिया जहाँ की फ़िक्र नहीं थी हमे
क्यूंकि हम थे दुनिया से परे |
उन दिनों को याद करके
ये ख्याल दिल में आते हैं
की क्यों हम सब
इतनी जल्दी बड़े हो जाते हैं |
–सुकृति चावला