बचपन के दिन
गीतिका
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लड़कपन का सुहाना वह ,जमाना याद आता है
झमाझम बारिशों में छपछपाना याद आता है
जमा कर लें करोड़ों आज खाते में मगर फिर भी
अठन्नी में ख़ुशी से झूम जाना याद आता है
बदलते दौर में बदली सभी हैं आदतें अपनी
मगर वह बेवजह ही मुस्कुराना याद आता है
कभी गिल्ली कभी डंडा , पतंगे थीं कभी जीवन
कभी पोखर में’ वह डुबकी, लगाना याद आता है
कभी तितली पकड़ते थे , कभी मछली पकड़ते थे
अहा गुजरा हुआ वह पल, पुराना याद आता है।
बगीचे थे फलों के खूब अपने भी मगर यारों
हमें वह दूसरों के फल ,चुराना याद आता है
सिमटकर रह गये रिश्ते हुए घर द्वार भी छोटे
हमें अपना वही प्यारा घराना याद आता है
पुष्प लता शर्मा