बचपन की होली
कहाँ हैं बचपन की वो होली,
साथ खेलने वाली हमजोली,
उछल कूद करनेवाली मस्ती,
कहाँ गयी वो प्रेम की कस्ती,
याद आते वो मिट्टी के खिलौने,
प्यारे प्यारे मेरे साथी वो सलौने,
रात में चमकते वो तारे चमकीले,
सदा घर घर में खुशियाँ खिले,
बड़ो को मिलता था एक आदर ,
सबको पता था अपनी चादर,
सुख दुःख को बाँटते थे मिलकर,
फटी शर्ट को पहनते थे सिलकर,
कहाँ गये वो मेरे सच्चे साथी,
वो शिक्षक जो पढ़ाते थे पाथी,
वो गलियाँ जो धूल से थी सनी,
पेड़ो की मधु, जो फूलो से बनी,
बदल गया सब यादें हैं शेष,
मन ढूंढता हैं आज अवशेष,
।।।जेपीएल।।