बचपन की याद —2
बचपन था न्यारा वो कितना
जिसमें सबसे नाता था
गलती हो कितनी भी हमसे
लेकिन सबको भाता था
लगता है खो गई कहीं
वो बीती बात पुरानी
छोटी छोटी बातों पर
जब याद आती थी नानी
नहीं भूलता वो है मुझको
वो आमों वाला बाग
जिसमें गुजरे सारा दिन
पर हवा चले जैसे आग
नहीं रही वो पुरवाई
ना ही वो गीत सुहाने हैं
जिनके धुन के बाबा, दादा
और नाना भी दीवाने थे
बचपन की सारी यादें
अब फिर से ताजा हो आई
सोच रहा था मन ही मन
तभी चली पवन पुरवाई
✍?पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
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