बचपन की यादें है प्यारी
बचपन की यादें है प्यारी,चिरस्थायी होती हैं सारी।
निश्छल मन का कोना-कोना,पावन होती सबसे यारी।।
काग़ज़-सी बातों का मेला,
तनाव से मन दूर अकेला,
सपनों की सुरभित उड़ान,
जीवन वो सावन की बेला,
नदियों-सी गतिशीलता भारी,पर्वत-सी ले अटल ख़ुमारी।
झरनों-सी चंचलता लेकर,पतंग-सी हो ऊँच उडारी।।
खेल बड़े हों सोच उजाली,
पेंग भरें ज्यों तरु की डाली,
जोश भरा मानों नश-नश में,
रीत निराली प्रीत निराली,
सबसे मिलना नातेदारी,बातों में खाश होशियारी।
सबके दिल के राजा बनके,मन-आँगन मारें किलकारी।।
खेल-खेल में सीख नयी लें,
मेल-मेल में प्रीत नयी लें,
भेद नहीं हो खेद नहीं हो,
मन की बाजी जीत नयी लें,
सूरज-प्रथम-किरण-सी पारी,बचपन की है याद हमारी।
पुष्प-सुगंध बनी रहती जो,आनंद लिए है हितकारी।।
आर.एस.प्रीतम