बचपन की मोहब्बत
बचपन की मोहब्बत को कैसे भुला पायेंगे
वादा करते जाओ,कभी याद नहीं आयेंगे।
अब जो बिछड़े है तो शायद ही मिल पाये
जिंदगी भर हम इस घाव को सहलाएंगे।
जिंदगी हंस के गुजरती तो बहुत अच्छा था
अब रो रो कर ही इस से हम निभायेंगे।
बहुत मिलेंगे नये हमसफ़र, इस दुनिया में
हम सब से तेरे किस्से जरूर सुनायेंगे।
माना वक्त भर देता है हर घाव को लेकिन
इन जख्मों के निशान,हम न मिटा पाएंगे।
सुरिंदर कौर