बचपन का अनकहा प्यार
सताती है याद मुझे उसकी रात दिन
करता हूँ जब भी मैं उसका ख्याल
सूरत बसी है उसकी यारों मेरे दिल में
नहीं कर पाया हूँ पर कभी इजहार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार
आकर ख्वाबों मुझको रुला जाती है
फिर थपकियाँ देकर मुझको सुला जाती है
आँख खुल जाती है तब मेरी हर बार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार
बात तब कि है ए जब जाता था स्कूल मैं
रहता था खोया हरदम उसमें ही फिजूल मैं
शायद इसीलिए कहने से मैं डरा हर बार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार
आज भी जब कहीं मुझसे मिल जाती है
दिल की कलियाँ मिलन से ही खिल जाती हैं
दिल सुबक उठता है पर मेरा हर बार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार
चाहता था उसको मैं खुद से भी ज्यादा
कहने का उससे भी था करता इरादा
जब भी जाता था कहने को मैं उसके पास
दिल करता था धक-धक बड़ा जोरदार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार -2
✍?पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
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