बचपन और पचपन
बचपन और पचपन एक सा नजर आता है,
तब भी जिद्दी थे, अब भी जिद्दीपन नजर आता है ।
बचपन की अभिलाषाओं को पूरी करते पचपन के हो गये,
पचपन के होते ही बचपन में खो गये ।
वो सुहाना बचपन वो हसीन सपने,
पचपन के होते ही वो रहे न अपने ।
जीवन की इस भा-गम-भाग में खो गये इतने,
बचपन की यादें बन गयी हसीन सपने ।
काश ! कोई लौटा दे,
वो मेरा बीता हुआ कल ।
वो मीठी सी मुस्कुराहट,
वो सुहाना सा बचपन ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)