बचपन और आज की दिवाली में फर्क
साहित्य पीडिया के हिन्दी मंच पर सभी पाठकों को मेरा सप्रेम नमस्कार । बचपन में हमें दशहरा पर्व से दिवाली पर्व तक शालाओं में अवकाश दिया जाता था । दशहरा एवं दीवाली पर्व पर एक अलग ही आनंद आता था तथा बहुत ही उत्साहित होकर दिवाली का इंतजार करते थे । बचपन और आज की दिवाली में फर्क के संबंध में मेरे अनुभव निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं, मुझे यकीन है आप अवश्य ही पसंद करेंगे ।
1. बचपन में मेरे माता-पिता, बुआ एवं सभी चाचा वह चाचियो ने दादी द्वारा दिए गए संस्कारों के अनुसार एक नियम ही बना लिया था कि वर्ष का अपना सबसे बड़ा त्यौहार दिवाली साथ मिलकर ही मनायेंगे ।
2.मेरे तीनों चाचा एक मुंबई में रेल्वे में कार्यरत, एक देवास में लघु उद्योग निगम में कार्यरत, एक चाचा महु में भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत एवं मेरे पापा भोपाल में राज्य सरकार के कार्यालय में कार्यरत थे ।
3. मेरी बुआ इन्दोर में नगर निगम के कार्यालय में कार्यरत थी । राजेन्द्र नगर, इन्दोर में बड़ा स्वयं का मकान था, हम सभी का । सभी को हर वर्ष एक साथ दिवाली मनाने की उत्सुकता रहती थी ।
4.मेरे पापा को सभी आस-पड़ोस में बोलते थे कि आप अपने घर में दिवाली के दिन अंधेरा करके जा रहे हो , पापा एक ही जवाब देते पूर्ण परिवार के साथ दिवाली मनाने का एक अलग ही आनंद है । इसी बहाने सब एकत्र होते हैं ।
5.पापा एवं सभी चाचा लोगों ने एक साथ त्यौहार मनाया जाना, मिलजुल कर रहना एवं जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद करने की भावना को सदा कायम रखा, जिसका परिणाम यह है कि आज भी हम सब चचेरी बहनें एवं भाई उन्हीं यादों को दिल में संजोए हुए पूर्ण रूप से उनको नमन करते हैं कि पापा एवं सभी चाचाओ ने घर की एकता को बनाए रखा ताकि हम बहन-भाइयों की आपस में सहानुभूति बरकरार रहे ।
6. पहले मम्मी एवं चाची लोग आपस में मिलकर दिवाली की सब पूर्व तैयारी करतीं थीं और फिर साथ साथ ही सब पकवान बनाए जाते थे । उनको साथ में लुत्फ उठाते हुए खाने का एक अलग ही आनंद आता था ।
7.एक चाची रंगोली बनाती , एक चाची हम बच्चों को तैयार करती एवं मम्मी वह एक चाची किचन में दादी के साथ दिवाली के पकवान बनवाती । सबसे महत्वपूर्ण सजावट एवं साफ-सफाई का काम बुआ का होता था । चाचा लोगों को बम पटाखे उड़ाने का एक अलग ही जोश रहता था और वो जोश शरीर में भी उमंगता भरता था ।
8. उस जमाने में ज्यादा तकनीकी शिक्षा नहीं होने के बाद भी सब खुश रहते थे । सब मिलकर हंसी मजाक करते एवं साथ ही रात को सोते समय अंताक्षरी जरूर खेलते थे । चाचा जी केवल टेप रेकार्ड खरीद के लाए थे तो सभी बहुत खुश हुए एवं चाचा जी ने सभी के गाने भी रेकार्ड किए, जो अभी भी यादगार रूप में जीवित हैं ।
इसीलिए बचपन में पहले से ही दिवाली मनाने की उत्सुकता रहती थी । अब आज की दिवाली मनाने के पहलुओं पर निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से अपने कुछ विचार प्रस्तुत कर रही हूं आशा है आप अवश्य ही पसंद करेंगे ।
1. आजकल सभी की व्यस्तता भरी जिंदगी हो गई है, स्कूल व विश्व विद्यालय में दिवाली के त्योहार पर पहले जैसा अवकाश नहीं दिया जाता, जिसके चलते समय के अभाव के कारण बिचारे बच्चों की भी दीवाली जैसा बड़ा त्यौहार मनाने की उत्सुकता एवं उमंगता समाप्त हो रही है ।
2.इस तकनीकी शिक्षा प्रणाली के तहत बच्चों को नये-नये आयाम तो उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है, जैसे मोबाइल, टेबलेट,कम्प्यूटर, लेपटॉप इत्यादि अन्य नयी तकनीकी रूप को तो शुरू करा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप आजकल बच्चे अधिक व्यस्त हो गए ।
3.हर घर में बच्चों से ही दिवाली के समय रौनक रहती है, परन्तु आजकल अधिकतर देखा गया है कि बच्चे अपनी शिक्षा या नौकरी के लिए घर से बाहर रहते हैं और अवकाश नहीं मिलने के कारण त्योहार पर भी घर नहीं आ पाते या कम अवधि के लिए ही आते हैं ।
3.माता-पिता भी कामकाजी होने के कारण त्योहार उत्सुकता से नहीं मना पाते क्योंकि उनको भी कार्यालय से अवकाश नहीं मिल पाता ।
4.धीरे-धीरे हिन्दुओं के सभी त्योहारों के मनाने का आनंद खत्म होता ही नजर आ रहा है । दिवाली जैसा बड़ा त्यौहार मनाने का भी पहले जैसा कोई चार्म नहीं रहा ।
5.इस मोबाइलाइजेशन के युग में युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने हेतु अच्छी शुरुआत तो करवा दी एवं उपयोग हेतु नयी तकनीकी मशीनों को भी उपलब्ध करा दिया, परन्तु नयी शिक्षा प्रणाली के तहत बच्चों को बहुत व्यस्त कर दिया ।
6. वैसे तो हर क्षेत्र में पक्ष वह विपक्ष दोनों पहलुओं को देखते हुए ही हर इंसान आगे बढ़ना चाहते हैं, पर व्यस्ततम जीवन शैली के कारण परिवार में दूरियां बढ़ गई हैं, जिसके चलते बच्चों को भी आजकल मोबाइल के जमाने में किसी से भी बात करने की फुर्सत नहीं है और न ही पहले जैसा लगाव ।
7.नयी तकनीकी रूप में पटाखे भी पहले जैसे नहीं हैं, आतिशबाजी मात्र दिखावटीपन में ही रह गई है ।
8.अब पहले जैसे परिवारों में मिलजुलकर पकवान नहीं बनते, बाजारों में सब उपलब्ध होने से अधिकांश लोग समयाभाव या शारीरिक स्थिति अकेले पकवान बनाने हेतु साथ नहीं दे पाने के कारण, मजबूरी में दिवाली जैसे बड़े त्यौहार मनाने हेतु बाजार से ही पकवान खरीद कर लाते हैं और फिर त्योहार मनाते हैं ।
9.आज के वर्तमान युग में मैं मानती हूं सब साधन, सुविधाएं एवं शीघ्र कार्य पूर्ण करने हेतु आवश्यक तकनीकी मशीनें भी उपलब्ध हैं परन्तु दिवाली मनाने का आनंद पहले जैसा बिल्कुल नहीं है । अब सिर्फ त्योहार मनाने की औपचारिकता मात्र रह गई है, अब न वो चाचा या चाची है ,न दादी है न ही बुआ और ना ही उत्साहित इंतजार त्योहारो का । हर इंसान बस अपने-अपने चलते आ रहे रिति रिवाजों को पूर्ण करने में सफल होना चाहता है, जो एक मात्र औपचारकता है ।
10. फिर भी यदि इस नए तकनीकी जमाने में भी पहले जैसा दिवाली का त्योहार मनाने की उमंगता एवं उत्सुकता को जगाया जाए तो पहले जैसा ही वातावरण निर्मित हो सकता है । भारत सरकार को शिक्षा प्रणाली में बदलाव करने की आवश्यकता है तथा साथ ही सभी सरकारी कार्यालयों एवं गैर सरकारी कार्यालयों में इस बड़े त्यौहार दिवाली पर अवकाश कम से कम दो दिन अनिवार्य रूप से दिया जाना अपेक्षित है एवं साथ ही कर्मचारियों को त्योहार मनाने के लिए आवश्यकतानुसार अवकाश प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे अपने दिवाली जैसे बड़े त्यौहार तो मना सकें ।
समस्त पाठकों यह लेख आपको कैसा लगा । आप सभी पढिएगा एवं अपने अपने -विचार अवश्य व्यक्त किजिएगा । धन्यवाद आपका ।