बगिया
बगिया,क्या कसुर है किसी का,जो बगिया देख ललचा जायें।
कभी गुलाब,कभी मोंगरा,तो कभी गेंदा पर नजर लग जायें।।
मनमोहक बगिया सुन्दर,भौंरा तो इठलाता है।
ले चुस पराग फूलों का,मंद मंद मुस्काता है।।
न जाने कब कहां पर,भौंरा मन चला जाये।
क्या असुर है किसी का,जो बगिया देख ललचा जायै।।
नवयुवती,नव कन्या बन,मस्त हवा में झुमती है।
सदा बहार मनमोहनी,काम बाण ले घुमती है।।
डर ,भय ,न त्रास मन में,निर्भिक हवा में घुमती है।
जो देखे बगिया, इक बार,,नजरे ,नजर पे झुलती है।।
बंधक बनाया माली ने,दिल पर खुशियां आ जाते।
क्या कसुर है किसी का, जो बगिया देख ललचा जातें।।
फुलों का अम्बार लगी थी,कवि हृदय पर गुलाब जगी थी।
गुलाब ही तो है,शायद,अनेक रंगों में झुम रही थी।।
मचलाती, इठलाती,लहराती,हवा में झुम रही थी।
न जानें,कब कौन वहां पर,फुलन देखने आ जाये।
क्या कसुर है ,किसी का ,बगिया देख ललचा जाये।।
सोच रही थी वह फुलन,इक माली का छंदक हूं।
साथ ले जाते कोई अगर,अभी तो मैं बंधक हूं।।
लिपटा लेती दिल पर अगर, बगिया में फांसी है।।
कर सोलह श्रृंगार अभी,नव कन्या तो राजीहै।
लगी है डर यहां, शैतान न यहां आ जाये।।
क्या असुर है किसी का ,जो बगिया देख ललचा जाये।।
डां,विजय कुमार कन्नौजे अमोदी वि खं आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़