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27 Jun 2023 · 9 min read

बगिया के गाछी आउर भिखमंगनी बुढ़िया / MUSAFIR BAITHA

बगिया के गाछी आउर भिखमंगनी बुढ़िया / बज्जिका लोक कहानी / प्रस्तुति : MUSAFIR BAITHA

एगो भिखमंगनी बुढ़िया रहे. ओकर मरदावा मर गेल रहे, जेकरा से ओकरा कए गो बच्चा भेल रहे. मगर सभे बच्चा कम्मे उमर में मर गेल रहे. एक्के गो कोरपोछुया बेटी मरनी, जे सभे से छोट रहे, सेहे केबल बच गेल रहे. ओकर नाव मरनी जानबूझए के रखले रहे ओकर माय. एक त ऊ जन्मे के समय मरते मरते बच गेल रहे अहू ले ई नाम, दोसर, अईला कि बच्चे में ओकर सब भाई बहिन मर गेल रहे तई से डाईन-जोगिन के नजर-गुजर से बचाबे के लेल ख़राब नाव रख देल गेल. कहे बाला त ईहो कहईत रहे कि ई भिखमंगनी बुढ़िया त हँका-हकिन के डायन हई जे खाली अप्पन बाले बच्चा के न भतारो के खा गेल हई. भिखमंगनी बुढ़िया के अलाबा ओकर टूटल-फूटल मरैया में बस एक्केगो एहे दोसर अदमी रहे, जेकर बियाह ई सोच के क देबे के बुढ़िया सोचइत रहे कि मरनी अब सियान हो रहल हई. एक दिन के बात हई. भिखमंगनी मांच-चांग के सांझ में अपना घरे लौटइत रहे. ऊ देखलक कि एगो सुन्दर अउर चरफर सियान लइरका चउरी में भइंसी चरा रहल हय. भोला नाव रहे ओकर. जेहन नाव ओइसने गुन. खुब्बे सुसील अउर देखे में बन्हिया. भिखइन एक्के बेर देखलक कि ऊ ओकरा मन में गर गेल. बुढ़िया सोचलक कैला न हम अई लइरका के फुसला-उसला के अपना घर ले जा के अप्पन बेटी से बियाह करबादू. भिखइन ओई लईरका के सब पता-ठेकाना पूछ लेलक आउर तब ई बेयाह बाला फैसला कयलक.

भिखइन एको बरका गो झोरा रखले रहे जइमे भीख में पड़ल चीज रखले रहे. ओइमे कथी हई, ई जाने के लेल ओई छौरा के मन बड़ा कुलबुलायेल रहे. बुढ़िया ई बात बूझ गेल. तनके देरी बतियाके बुढ़िया ओकरा पटिया लेलक. बुढ़िया अब अप्पन
जोजना कुछो औरो अगाड़ी बढ़बईत ओई छौरा के कहलक-“”ऐ बउआ, अई झोरा किसिम किसिम के फल-फूल हई. आम, अमधूर, लुच्ची, केरा….खयेबे की?”” भोला मुड़ी हिला के हुंकारी भरलक. त बुढ़िया अप्पन जाल आगे फेकइत कहलक-“ई सब फल-फूल तोहरे हो जतऊ बस एगो असान बात पूरा कर लेबे.” “बोल, कथी?”-भोला पूछलक.
“अइसने दोसर खाली बोरा में तोरा पइसे के परतऊ अउर बोरा में बंदे हमरा घरे तक चले के होतऊ. ऊ जे ओई गाछी के पास गेरुआ झंडा बाला बरका कोठा लउकई हई ओकरे लंग हम्मर मरइया हई. बस, हमरा पिट्ठी पर बोरा में लदायल उहाँ पहुँचले कि बाजी जीत गेले. फेर, लगले हम तोरा ई सभे फल-उल अऊर कुछ पईसो दे के लउटा देबऊ. बोल बउआ मंजूर हउ?”-बुढ़िया अप्पन घर के तरफ इसारा करइत पुछलक. भोला हुंकारी भर देलक. “त ई ले बोरा बउआ”, बुढिया जभिये कहलक भोला तुरते बोरा में समां गेल. बोरा पुरान रहे, अउरो जहाँ तहां कटल-फटल जेकरा चलते भोला के सोआंस मोसकिल से लेकिन चलइत रहे. बुढिया एहो उमर में मजगूत. बुढ़िया खुब्बे तेजी से चले लागल. साँझ होए लागल. बुढ़िया एक दू सौ डेंग अगाड़ी बढ़एल होत कि भोला के किछो गड़बड़ बुझाएल. अब त बोरा में बंद भोला के दम चढ़े से जादा डर से हालत ख़राब हो गेल. ऊ डेरा के छर छर मूत देलक. भिखइन के जब बुझाएल कि हमरा पिट्ठी पर कुच्छो गरम अउर गील गिर रहल है त ऊ रुक गेल और बोरा निच्चे ध देलक. भोला के धिम्मा गिरगिराएल अबाज बाहर आएल-“भिखइन काकी, भिखइन काकी, तनी हमरा पेशाब करबा दा, बड़ा जोर से मुतवास लागल है.” और, बुढिया जइसे बोरा के मुंह खोललक भोला लत्तो-पत्तो हो गेल. पछाड़ी मुडियो के न देखलक.
तीन चार महीना बीतल भेल कि बुढिया फेर कहियो साँझ के समय घरे लौटइत में
वोहे कदम के गाछी लंग भोला के असगरिए भइंसी चरबइत पएलक. ऊ बगिया के गाछी पर चढ़ल रहे. बुढ़िया जईसही नजदीक आएल ओकरा ऊ ओरहन देलक-“गे बुढ़िया, तू निम्मन न छे, बड़ा खराब छे. ठगनी छे. ओई दिन तोहर मनसा ठीक न रहऊ. तू धोखा दे के आउर बहाना बना के बोरा में मून के कहीं ले जा के हमरा जान से मारे चाहइत रहे. जो, तोहरा से हम बातो कैला करू?” लेकिन, भोला त भोले रहे. बुढ़िया अप्पन एकलौती दुलरी बेटी के कसम खयलक आउर भोला के नजर में अपना के एकदम्मे सरीफ अउर बेकुसूर साबित करिये लेलक. बुढिया देखलक कि तीर निसाना पर लाग गेल है अउर सिकार तऽ अब फंसिए गेल है. बुढिया कहलक-“बेटा, आई बड़ा असगुन बाला दिन रहल हमरा लेल. दू-चारे दाना अन्न पड़ल हऽ आई झोरा में. दू-चार गो बगिया तोड़ के हमरा हाथ में दे दे बेटा.” लेकिन भोला के मन में अभी खटका लागले रहे, ऊ बोललक-“न गे बुढउरी! तू फेन से हमरा पकड़ के झोरा में बंद करे चाहई हे. जदी, ई बात न हई तऽ तू हाथे में कएला बगिया लेबे चाहई हे? ला, झोरा फइला, हम इ फल तोड़ के ओइमे गिरा देई हइअउ, गन्दा भी न होतउ.”
बुढ़िया कहलक-“तब तऽ बेटा, ई फल अई में गिरके झोराइन हो जतई.” “तऽ एकरा
हम घासे में गिरा दे हइअउ, ठीक न?” “न बेटा, तब तऽ ई गिरके घसाइन हो जतई”, बुढ़िया जइसे भोला के संका बड़ा मासूमियत से ख़तम करईत कहलक-“
बेटा, तू हमरा पर बेकारे में सक करई हे अउर हमरा लंग आबे से डेराई हे. अब
ई उमर में छल-कपट कर हम अप्पन परलोक बिगाड़ब? ई फल के हम देबता पर चढ़ाएब. एकरा सीधे हाथ में ले के हम सम्हाल के रखब.” अब तऽ भोला ऊ चलाक बुढिया के जाल में फंस गेल. उ बोललक-“तऽ बोल काकी, तोरा हम केना ई फल दिअउ?” “बस, बेटा, तू लबक के हमरा हाथ के तरफ फल बढ़ा दे, हम छबक के झोरा में धऽ लेब.”, बुढ़िया खुस होइत कहलक. अउर, जइसही बगिया तोड़ के गाछी के डाढ़ से निच्चा के ओर झुक के एक हाथ से डार पकड़ दोसर बगिया बाला हाथ बुढिया के और बढ़एलक बुढिया जबान अदमी जइसन ऊपर छड़प के झपट्टा मार के भोला के बढल हाथ बड़ा फुर्ती से पकड़ लेलक अउर निच्चा के तरफ कसके खींच लेलक. तुरते भिखारिन भोला के झोरा में बांध लेलक. फेन अई बेर भोला के डर से मुता गेल, लेकिन बुढ़िया पेसाब से भिंगला के बादो अमकी बेर बोरा रस्ता
में कहीं न धएलक. अपना घर पर पहुँचिये के जमीन पर रखलक. बोरा खोले से पहिले सब बात अउर जोजना बुढ़िया अपना बेटी के फुटकिया के बता देलक. ई जान के मरनी के खुसी के ठेकाना न रहल कि ई लइरका के हम्मर मतारी ह्म्मरा से बियाह कराबे ला आनलई हऽ. ओकर मन अपन होए बाला दूल्हा के देखे के लेल मचल उठल. बुढ़िया एगो कमरा में ले जाके होसियारी से बोरा के मुंह खोलक अउर भोला के बाहर निकाल के ढेंकी से बान्ह देलक. बोरा से बहरा निकल के भोला के अटकल सोआंस अब ठीक होए लगल. लेकिन भोला अपन घबराहट पर काबू रखलक. चेहरा पर कोनो भाव न आबे देबे के कोसिस कएलक. ऊ कुच्छो न बोललक. ओकरा तऽ अब पता चलिए गेल रहे कि बुढ़िया केतना भयानक अउर ठगनी
रहे. ओकरा गोस्सा अउर भय समां गेल.

भोला के साथ जे खराब बेवहार मरनी के माय कयले रहे ऊ तऽ ओकरा खुद्दो
बन्हिया न लागल, कि केना भोला के जानबर से भी गेल-गुजरल तरीका से धऽ–पकड़ के अउर धोखा से बान्ह-छान के ईहाँ ले अलई हऽ. लेकिन ई सोचके मरनी के मनो गुदगुदाय, कि माइये तऽ ओकरा अइसन बन्हिया सौगात लाके देलक हऽ. तरीका चाहे ख़राब बेढंगा अउर अमानुषिक भले ही रहल. ऊ तुरत सोचलक कि माई के ओर से अभिये हम माफ़ी मांग ले हईअई.
रात में थाकल-माँदल बुढ़िया जब फोंफकार भरे लागल त सुन्दर चुलबुल जबान मरनी भोला के पास पहुंचल. ऊ ममोरल-समोरल अउर मईल सलवार-समीजो में बड़ा निम्मन लगइत रहे. भोला भी ओकरा गौर से देखलक. एगो जबान कांच-कुमार के ईगो जबान लइरकी के तरफ सहजे धेयान गेल. लेकिन अपना उमर के एगो जबान सुन्दर लइरकी के एकेले अपना पास हंसइत-मुसकुराइत पा के भी भोला मन मारले रहे, ओकरा तऽ मन में बहुत डर समायल रहे कि पता न बुढ़िया कथी करेला ओकरा भला-फुसला के अउर बोरा में धऽ के इहाँ लाएल हऽ ? ओकरा तऽ अपना जानो मरे के डर समाएल रहे. ओन्नी, कोनो जबान लइरका से असगारिये में मिले अउर बोले-बतियाये के मरनी के ई पहिला बेर मौका मिलल रहे. ओकर तऽ जइसे बिन मंगले मन के साध पूरा होए बाला रहे. भोला के ऊ टुकुर टुकुर हसरत भरल नजर से देखे लागल. कहल गेल हई-खून, खैर और ख़ुसी छुपाबहू से न छुपऽ हई. भोला पर से ओकर नजर हटते न रहे, भोला से ऊ बोले-बतियाए चाहइत रहे, मगर भोला तऽ वोई समय तक बउके-बताह बनल रहे. कुच्छो बोल्बे न करे.
रात जब बहुत बीत गेल, मरनी के काफी समझाबे-बुझाबे अउर निहोरा करे पर भोला मन मारले मारले दो-चार कौर खाना मुंह में रख लेलक. खीर तऽ मरनी आई अपना हाथ से अउर बड़ा अरमान से बनैले रहे कि अपना होए बाला बालम के खिआएब. से भोला मुंह जुठाइयो लेलक तऽ ओकर आत्मा ज़ुरा गेल. ओकरा खुसी के ठेकाना न रहल. अब तऽ मरनी भोला से बोले-बतियाये ला, ओकर बोली सुने ला बेक़रार हो गेल.

एन्ने, मरनी के पेयार अउर बिन छल कपट बाला बेवहार से भोला के लागे लागल कि मरनी सुन्दर, सुसील के साथ साथ बन्हिया लइरकी जरूर हई लेकिन ओकर मतारी के बेओहार के इयाद करते ऊ बेचैन हो गेल, टीइसे, फेन ओकर बिस्वास मेट गेल. ओकरा भारी क्रोध मन में आ गेल. ओकरा मन में दू तरह के भाव आएल. एक कि
केहुना इहाँ से भागल जाए दोसर कि भागे से पहिले कोनो तरह से बदला लेल जाये बुढ़िया से. ऊ कुछ सोचे लागल तऽ ओकरा एगो उपाए मन में सूझल. ऊ आब मरनी लंग ई देखाबे के कोसिस करे लागल कि जइसे हमरा मन में कोई दुःख न हए
अउर हम मरनी के बात-बेवहार से खुश हती.

भोला के लइरकी जइसन लमहर लमहर अउर एकदम्म करिया केस रहे. अइ से ऊ देखे में खूब सुन्नर लगइत रहे. मरनी तऽ जइसे ओकर सुन्नर-लमहर केस देख के लोभा गेल रहे. मरनी के अप्पन केस बहुत छोट छोट रहे. भोला के केस एहन लमहर केना होएल, ई बात जाने के लेल ऊ बेचैन हो गेल. भोला से ई बात ऊ जाने तऽ चाहइत रहे, मुदा डेराइतो रहे कि कहीं ऊ डांट न देबे. बाकी, ऊ डेराइते-“डेराइते
भोला से पुछलक-“भोला, एगो बात तोरा से पूछियो?” भोला मुड़ी हिला के हुंकारी भरलक. अब तऽ मरनी के डर बिला गेल. ऊ फट से अप्पन कोसचन अगाड़ी कएलक-“तऽ ई बतावा, तोहर केस एतना जादे लमहर, घन अउर करिया केना भे गेलो?
हमरा तऽ तोहरे सन केस चाही.” “एकदम असान हई एहन केस बनाबे के लेल”, भोला एकदम्मे भोला बनइत कहलक, “हमर माई कहई हई कि ऊ ओखरी में हम्मर मुड़ी धऽ के हौले हौले मूसर से कूट देलकई तऽ तनके दिन में हम्मर झोंटा एहन लौगर हो गेलई.” मरनी के ओकर ई झूठ बात पर भरोसा भे गेल. ऊ भोला के कहलक-“तऽ भोला, हम्मर केस अपना जइसन अभिये बना दा न! ई देखाऽ, ईंहे पर ओखरी अउर मूसर धएल हई.” अउर एतना कहके दउड़ के ऊ मूसर उठा लेलक अउर जाके भोला के हाथ में पकड़ा देलक. एन्ने भोला सोचइत रहे कि एक्के साथ दू गो मौका आ गेल है. मरनी के मार के ओकर मतारी के धोखा अउर ख़राब बेवहार के बदला हम ले लेब अउर भागियो जाएब. लेकिन, मरनी जभिये मूसर अपना हाथ में रख मरनी के मुड़ी पर मारे ला कएलक कि ओकर हाथ उठल के उठले रह गेल, थरथराये लागल. धोखा के बदला धोखा, ई ओकर आत्मा के न मंजूर भेल. लागल जइसे ओकर अकिले हेरा गेल. ऊ हाथ में मूसर उठएले खड़ा रह गेल. एन्ने मरनी मूसर के धमक सुने ला बेचैन रहे. मूसर के चोट अपना केस पर पड़े में देर होइत देख ऊ भोला पर मुड़ी उठा के तकलक. ऊ देखलक कि भोला के आँख से लोर झर रहल हए. भोला के कनइत देख ओकरा आसचरज भेल. भोला के जब मरनी टोकलक तऽ ऊ सुबक सुबक के काने लागल. मरनी के न बुझाइत रहे कि भोला के एकाएक कथी हो गेलई कि ऊ काने लगलई हऽ? भोला कनइत-कनइत अप्पन मन के सब बात बता देलक. भोला के मन में जे गोस्सा अउर अबिसबास चल आएल रहे ऊ तऽ सहजे रहे लेकिन मरनी के बेवहार में जे अपनापन रहे, तनिको छल-कपट न रहे, ऊ भोला के गोस्सा अउर अबिसबास के जीत लेलक.

मरनी के लाज-शरम अब जइसे मेटा गेल. भोला पर ओकर पेयार उमड़ आएल. ऊ दू हाथ दूर खड़ा भोला के पास चल गेल अउर ओकरा अप्पन दुन्नो बांह फइला के कस के
पकड़ लेलक अउर ओकरा छाती से चिपक के फफक फफक के काने लागल. भोलो के बांह अपनेआप मरनी के दुन्नो ओर से पकड़ लेलक. दुन्नो के गरम गरम सोआंस लोहार के भाँथी के जइसन हाली हाली चले लागल…
***

[बज्जिकांचल के सीतामढ़ी इलाके की एक लोककथा, इन पंक्तियों के मां–मुख से सुनी हुई, कथांत में तनिक परिवर्तन के साथ]

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