बगावत की बात
41
जब होनी ही नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ
हो गए हैं मेरे खिलाफ अब खुदा क्या करूँ।
खुशियों ने करी है खूबसूरत साज़िश दोस्तों
कर दिया गमों को मुझ पर फिदा क्या करूँ।
इस कदर गले लग गई जिम्मेदारियां मुझसे
कर न पाए उन्हें हम कभी जुदा क्या करूँ ।
मुश्किलों ने मसरूफ कर दिया ऐसे मुझको
आशिक़ी के लिए वक्त ही न मिला क्या करूँ।
ज़िंदगी के जद्दो-जहद ने ही लाचार कर दिया
चाह कर भी मैं किसी का न हुआ क्या करूँ।
-अजय प्रसाद
42
***
मैं कोई भीड़ का हिस्सा नहीं
क्या आपको ये दिखता नहीं।
मुझे पढ़कर आप फैसला करें
मैं अनर्गल कुछ लिखता नहीं।
नज़रिया है मेरा सबसे अलग
मेरआंखों से सच बचता नहीं ।
हक़ बयानी का है लह्ज़ा जुदा
मेरी लेखनी पहले जैसा नहीं ।
बहुत हो गया बक-बक अजय
माना ढीठ कोई तुझ सा नहीं
-अजय प्रसाद
43
यूँ खयाली पुलाओ पका रहा हूँ मैं
उम्मीदों के अलाव जला रहा हूँ मैं ।
देके तकलीफ़ों को तसल्ली दिल से
बेवकूफ खुद को ही बना रहा हूँ मैं।
अब है आपकी मर्ज़ी माने न माने
हक़ीक़त से रुबरू करा रहा हूँ मैं।
देखना वक्त खुद बदल देगा उसे
वक्त से पहले ही बता रहा हूँ मैं।
अरे!मेरा क्या!आज हूँ कल नहीं
आंधियों में चराग जला रहा हूँ मैं ।
क्या समझता है तू अजय खुद को
बस यही बात तो समझा रहा हूँ मैं।
– अजय प्रसाद
44
बाल की खाल अब निकाले जा रहे हैं
खामिया एक दूजे के खँगाले जा रहे हैं।
आखिर चैनेल को चलाना भी ज़रूरी है
हर रोज़ नये नये मुद्दे उछाले जा रहे हैं।
देखो कहीं लग न जाए सूरज को सदमा
धूप को एहतियात से संभाले जा रहे हैं ।
चांद की चापलूसी में लगे हुए कुछ लोग
सितारों से माँगे उनके उजाले जा रहे हैं।
खामोशियां तेरी अब खलने लगी अजय
भड़ास दिल के भरपूर निकाले जा रहे हैं।
-अजय प्रसाद
45
चांद मुझ पर झल्ला गया
साथ छतपे मैं जो आ गया।
ज़रासी ज़ुल्फें क्या सहेज दी
बादलों को गुस्सा आ गया ।
शाम तो मुँह फुलाकर बैठी है
उनसे मिल कर जो आ गया।
फूल सारे के सारे फफक पड़े
काँटो ने जब गले लगा लिया।
तारे तो तिलमिला कर रह गए
चेहरे पे मेरे नूर जब आ गया
आ गई महफिल मुश्किल में
अजय जब कभी तू छा गया
-अजय प्रसाद
46
रह कर खामोश खुद को सज़ा देता हूँ
बेहद गुस्से में तो बस मुस्कुरा देता हूँ ।
सब नाराज़ हो कर क्यों जुदा है मुझसे
कहते हैं लोग मै आईना दिखा देता हूँ ।
क्यूँ रह गया महरूम उनके नफरत से भी
अक़्सर ये सोंच कर आँसू बहा देता हूँ ।
फूलों की अब नही है चाह मुझको यारों
काँटों से भी अब रिश्ते मै निभा देता हूँ ।
मिल जाए आसरा भी ज़रा रातों को
अक़्सर शाम ढलते ही दीया बुझा देता हूँ
-अजय प्रसाद
47
देखना तू हद से मैं गुजर जाऊँगा
तेरे बगैर तुझे जी कर दिखाऊँगा ।
बड़ा नाज़ है न तुझे खूबसूरती पे
तेरे सामने तुझ से,मुकर जाऊँगा ।
अब देखना मेरी इन्तेहा-ए-बेरुखी
तेरी नज़रों से मैं खुद उतर जाऊँगा।
चाहा था जिस शीद्द्त से तुझे मैनें
उसी शीद्द्त से नफरत भी निभाउँगा।
ये अलग बात है अजय कुछ भी कहे
भला कैसे मैं उस को भुला पाऊँगा ।
-अजय प्रसाद
48
खाक़ से पूछा है खाक़सार का पता
क्या कहूँ मैं ए दिल अब तू ही बता
****
बड़े खुश हो अपनी खुद्दारी पे
बन के जमूरा मन के मदारी के ।
रिश्वत,सिफारिशो जी हुजूरी से
लग गया वो नौकरी सरकारी पे।
किससे,कितना,औ कब है लेना
सारा दारोमदार है अधिकारी पे ।
तू तो कहता था कि सब ठिक है
यहाँ लोग उतरे हैं मारा-मारी पे ।
बात मत करना ,उस अजय की
जिंदा है मौत की खातिरदारि मे ।
-अजय प्रसाद
49
किसी भी तारीफ के तलबगार हम नहीं है
भई!उच्चकोटि के साहित्यकार हम नहीं है।
हाँ! लिखता हूँ लाचारी का ओढ़के लबादा
साहित्य में संक्रमण के शिकार हम नहीं है ।
मुझको भला महफ़िलों की क्या है ज़रूरत
किसी दावते सुखन के हक़दार हम नहीं हैं।
हाथ फैलानेवालों के साथ कोई वास्ता नहीं
शुक्र है खुदा का यारों बेरोजगार हम नहीं हैं ।
अबे किस घमंड में जी रहा तू अजय, बता
अब ये मत कहना की गुनाहगार हम नहीं हैं।
-अजय प्रसाद
50
बेहद सकून था तेरे दीदार से पहले
जिन्दगी खुशगवार थी प्यार से पहले।
थी बेताबी,बेचैनी न कोई हसरत
न थे यारों इतने बेक़रार से पहले ।
नींद,थी ख्वाब थे,थी तन्हाइयां भी
पर न थीं उलझनें इक़रार से पहले ।
गुजरा कई बार तेरी गली से था मैं
ऐसे बोझिल न थे रफ्तार से पहले।
सुबहोशाम,दिन-रात थे मेरे अपने
इतने हसीं न थे इंतज़ार से पहले ।
दिलो-दिमाग दुरुस्त रहे थे अपने
बड़े खुशमिजाज थे तक़रार से पहले।
अब अजय समझा आशिक़ी क्या है
शिगुफ़ा-ए-जवानी खुमार से पहले।
-अजय प्रसाद
51
भूत,भविष्य औ वर्तमान के लिए
रोटी कपड़ा और मकान के लिए ।
अपने दीन,धर्मऔ इमान के लिए
बेहतर एक हिन्दूस्तान के लिए ।
क्यों न मिलजुलकर रहें हम सब
गीता,बाईबल औ कुरान के लिए ।
छोड़ ज़िद मज़हबी मुश्किलात के
करे गुफ्तगू बेहतर इन्सान के लिए ।
आईये करें कोशिश अजय हम सब
मुल्क हो महफ़ूज़ हर जान के लिए।
-अजय प्रसाद
52
मशहूर होने के लिए वो बदनाम हो रहा है
आजकल तो सबकुछ खुलेआम हो रहा है।
मिलना-जुलना या हँसना-बोलना ही नहीं
मतलबपरस्ती से दुआ सलाम हो रहा है।
कल तलक जो थे इदारे फायदे के दम पर
देखिए किस सलीके से निलाम हो रहा है।
संसद,सियासत,संविधान,हो या सरकार
कायम होने का पुख्ता इन्तेजाम हो रहा है ।
इस दौर में अजय कोई कुछ भी कहे मगर
वक्त सोशल का मीडिया गुलाम हो रहा है।
-अजय प्रसाद
53
लो फ़िर से नया साल मुबारक हो
ज़िंदगी ये खस्ताहाल मुबारक हो।
बस चंद रोज की है ये चकाचौंध
फ़िर वही जी जंजाल मुबारक हो।
सुबहोशाम करना खुद को तमाम
दिनोरात अच्छे खयाल मुबारक हो।
घर,दफ्तर,बाज़ार,है आदमी लाचार
मुफलिसी और मलाल मुबारक हो।
अमीरों को अमीरी,गरीबों को गरीबी
कमाई हराम और हलाल मुबारक हो ।
संसद,संविधान,समस्याएँ,सियासत
ज्म्हुरियत के लिए सवाल मुबारक हो।
भूल कर हर गम जश्न मनाते हैं लोग
दोस्तों कुदरत का कमाल मुबारक हो।
अजय प्रसाद
54
अक़्ल और इमान खतरे में है
अब मुर्दे की जान खतरे में है।
आप जीते रहें होशोहवास में
ज़िंदगी पे एहसान खतरे में है।
देखना वक़्त दे जाएगा दगा
आज का नौजवान खतरे में है ।
क्या करेगा झोंपड़ी बना कर
बँगले आलिशान खतरे में है ।
खूबसूरत चेहरे,खोखली हँसी
आजकल इन्सान खतरे में है ।
देख हालात-ए-हुस्नोईश्क़ की
आशिक़ी की दुकान खतरे में है ।
करने लगे हैं जिस तरहा इबादत
अल्लाह और भगवान खतरे में है
डूबे हुए हैं इतने खुदगर्जि में लोग
अपनी अपनी पहचान खतरे में है।
तुम खुश हो हमारा जलता देख के
भूल गये तुम्हारा मकान खतरे में है।
मसीहा न पैगंबर,न ही कोई अवतार
लगता है कि अब जहान खतरे में है।
अबे अजय !तुझे बड़ा इल्म है सबका
मगर सुन तेरा ये इमकान खतरे में है।
-अजय प्रसाद
इमकान =expectation /सम्भावना
55
दुश्मनों को जो पसंद बहुत है
अपने यहाँ जयचन्द बहुत है।
जो है अंधा ,बहरा और गूँगा
आवाज़ उसकी बुलंद बहुत है ।
जिसने सीखा है सच छिपाना
समझ लो के हुनरमंद बहुत है।
हर मौके का फायदा है उठाता
यानी वो ज़रूरत मंद बहुत है।
माज़ी,हाल,मुस्तकबिल खंगाले
देखिए आज करमचंद बहुत है।
छोड़ दिया अपने हाल पर हमें
मगर वैसे वो फिक्रमंद बहुत है ।
-अजय प्रसाद
56
सदियां गुज़र गयी मगर हालात ज्यों के त्यों
अमीर और गरीब की मुलाकात ज्यों के त्यों।
वही ज़ुल्मोसितम औ वही खोखले वायदे हैं
जनता के लिए नेता के ज़ज्बात ज्यों के त्यों ।
वही फ़ासले,वही दूरियां,औ वही मजबूरियाँ
हुकूमत औ अवाम की औकात ज्यों के त्यों ।
गुजर गयी कई पीढियाँ जवाब ढूंढते-ढूंढते
आज भी हैं होठों पर सवालात ज्यों के त्यों ।
अब तो अजय आ गया होगा तुझको यकीं
लिखनेवालों के हैं मुश्किलात ज्यों के त्यों।
-अजय प्रसाद
57
हर गाँव को ब्रॉडबैंड नेटवर्क से जोड़ा जाएगा
खर्चा-ए-बोझ मिडिल क्लासपर डाला जाएगा।
आर्थिक मजबूती के लिए बस महंगाई मुद्दे को
भाईयों अगले आम चुनावों तक टाला जाएगा।
हम रखतें है हर बार बजट में सभी का खयाल
इस बार भी अमीरों को गरीबों में डाला जाएगा।
कुछ चीजें महंगी होगी और कुछ होगी सस्ती
नौकरी वालों को उनके हाल पे छोड़ा जाएगा ।
हाँ गरीबों बेरोजगारों किसानों की बात न करें
वक्तऔ हालात के अनुसार उन्हें ढाला जाएगा ।
सत्ताधारी तो करेंगे तारीफें अपने बजट पेश का
खामियां तो विपक्षियों द्वारा ही निकाला जाएगा।
-अजय प्रसाद
58
आईये आज हम ज़रा देश भक्ति दिखाएं
सोशल मीडिया पे गणतंत्र दिवस मनाएं ।
पोज़,पोस्टर,पोस्ट,पँक्तियों,के साथ-साथ
बधाइयाँ देकर एक दूसरे को उल्लु बनाएं।
लेकर हाथों में तिरंगा और पहन के टोपी
महापुरुषों के आत्माओं को टोपी पहनाएं।
बस रस्म अदाएगी की तो बात है यारों
कम से कम इसमे तो इमानदारी दिखाएं।
तुम तो अजय बंद ही रखों अपना मुहँ
तुम्हारे जैसे तो तरक्की ही न कर पाएं ।
-अजय प्रसाद
59
अपनी मक़बूलियत पर भी ध्यान देतें हैं
इसलिए तो वो विवादित वयान देतें हैं।
कहीं जंग न लगे लफ्जों के तलवार में
उन्हें वो अक़सर मज़हबी म्यान देतें हैं।
जब कभी भी जनता जाग जाती है यारों
उनकों धर्म और पाखंड का ज्ञान देतें हैं ।
भीड़ चाहे हो किसी धर्म या जाति का
भड़कने लिये वक़्त एक समान देतें हैं।
लगता है कि तू भी जान गंवाएगा अजय
तेरे जैसों को वो तोहफ़े में शमशान देतें हैं।
-अजय प्रसाद
60
सियासत में बली के बकरे कौन,जनता
यां उठाए नेताओं के नखरे कौन,जनता।
संसद,संविधान,हुकूमत वो सब ठिक है
मोल लोकतंत्र से ले खतरे कौन,जनता ।
सारे ऐशो-आराम तो हैं लीडरों के लिए
भूखे-नंगे सडकों पर उतरे कौन,जनता ।
गरीबी,बेरोजगारी,किसानों की लाचारी
तमाम त्रासदियों से बिफरे कौन, जनता ।
हालात और हक़ीक़त बदलता है कहाँ
खुद ही परेशानियों से उभरे कौन,जनता।
-अजय प्रसाद
61
रास्तों से पूछ मंज़िल का पता
बेबफ़ा से पूछ संगदिल का पता।
लाशों से भला क्या पूछता है तू
खंजरो से पूछ कातिल का पता ।
मायुस हो कर तो यूँ मत डूब यार
लहरों से पूछ साहिल का पता ।
तन्हाइयां तुम्हें कर देंगी बरबाद
शमा से पूछ महफिल का पता ।
जाननी है अजय कीमत अपनी
हाशिये से पूछ हासिल का पता
-अजय प्रसाद
62
महफ़ूज़ हूँ मैं मुझसे दूर रहा कर
हाँ औरों के लिए फ़ितूर रहा कर ।
इदारेईश्क़ में इन्वेस्टमेंट है फिजूल
खफ़ा मुझ से मेरे हुजूर रहा कर ।
तेरी गली से अब गुजरता कौन है
मेरे लिए तो तू खट्टे अंगूर रहा कर ।
झांसे में तेरे कभी आनेवाला नहीं
चाहे लाख दिल से मंजूर रहा कर ।
बड़ा फ़ख्र है तुझे मुफलिसी पे न
तो अजय ताऊम्र मजबूर रहा कर ।
-अजय प्रसाद
63
तारीफ से कर दिया पहले तरबतर
तब जाके हुए हैं ‘वो’ मेहरबाँ हमपर।
अब ये ज़माना चाहे या न चाहे यारों
हमनें ज़माने को है बनाया हमसफर ।
लाख दर्द मिले,सब्र से लिया है काम
अश्क़ों ने भी किया रहम आंखों पर ।
यूँ तो कई बार लगा मंजिल करीब है
बस इसी भरम में फिरते रहे दरबदर ।
संभल तो गई ज़िंदगी तुम्हारी अजय
हाँ भले ही संभली हो ठोकरें खा कर।
-अजय प्रसाद
63
भूल गये हैं वो एहसान कर के
तोहमत के तमगे दान कर के ।
मैने खता-ए-ईश्क़ की है दोस्तों
जाऊंगा ज़िंदगी कुर्बान कर के ।
कोई दवा नहीं है इस मर्ज़ का
देखा है धरती आसमान कर के ।
लोग तो लुत्फ़ लेतें है सताने में
फेर लेतें हैं मुहँ सब जान कर के।
तुम अजय बेशक़ नामाकूल हो
क्यों रहे खुद को नादान कर के।
-अजय प्रसाद
64
बेसिर-पैर की बात मत करना
दिन को कभी रात मत कहना।
रुसबा न हो जाए प्यार तुझ से
घर के मुश्किलात मत कहना ।
दिल तो पागल है समझेगा नहीं
उसे अपनी ज़ज्बात मत कहना ।
सबको मिलता है कहाँ सबकुछ
सबके भले की बात मत करना।
देख अजय अगर तू है समझदार।
गज़लों को आज़ाद मत कहना।
-अजय प्रसाद
65
उसे तो एहसास-ए-हुनर ही नहीं
कितना चाहता हूँ खबर ही नहीं ।
कोशिशें भी मेरी रूठ गई मुझसे
हुआ उस पर कोई असर ही नहीं ।
भटक रहा हूँ रास्तों पे बे-मंजील
और रास्तों को ये खबर ही नहीं ।
महफ़िलें मुझ पे मेहरबाँ हैं यारों
तनहाईयाँ तो मय्ससर ही नहीं ।
देख लो अजय औकात अपनी
मत कहना की मोतबर ही नहीं ।
-अजय प्रसाद
मोतबर = भरोसेमंद
66
क्या कहेंगे भला हम उस भाईचारे को
रोक न पायी जो मुल्क के बँटवारे को ।
गुनाहगार थे कौन औ सज़ा मीली किसे
तरस गए अपने ही अपनों के सहारे को ।
किसी को सत्ता तो किसी को मिला भत्ता
बेबसोमजलूम तो भटकते रहे गुजारे को।
जो थे खुशनसिब वो रह गए महफ़ूज़ मगर
भूले नहीं उस दौर के खौफ़नाक नज़ारे को।
-अजय प्रसाद
67
मुझ से हमदर्दी की हिमाकत न कर
मुझसे ही मेरी यार शिकायत न कर ।
मत जाया कर अपनी ये रहमदिली
रंज कर मगर कोई रिफाक़त न कर ।
लूटा चुका हूँ मैं हर एक पल गमों के
अब तू अश्क़ों की हिफाज़त न कर ।
खाक़सार हूँ खाक़ में मिल जाऊँगा
ज़िंदगी,मौत से कोई बगावत न कर ।
हौंसला अफजाई की ज़रूरत नहीं है
खामखाँ मुझ से तू अदावत न कर ।
मिल जाए शायद क़रार तुझको भी
अजय साँसों पे कोई रियायत न कर।
-अजय प्रसाद
68
खौफ़ -ए- फसल है इंश्योरेंस
बेहतरीन शगल है इंश्योरेंस ।
लाईफ़ का हो या हो हेल्थ का
कीचड़ में कमल है इंश्योरेंस ।
है वीमा विज्ञापनों का बाज़ार
ज्यूँ गुट्खा विमल है इंश्योरेंस
शौक-ए-अमीरी,बोझा-ए -गरीबी
फक़त रद्दो बदल है इंश्योरेंस ।
कहीं LIC,कहीं STAR ,तो कहीं
ये SBI जनरल है इंश्योरेंस
अच्छा है अजय तू ने भी लिया
आखिरी ये अमल है इंश्योरेंस ।
-अजय प्रसाद
69
हुस्न उनका है मल्टीप्लेक्स मॉल की तरह
ईश्क़ मेंरा है सरकारी अस्पताल की तरह ।
भला कैसे हो हम पर नज़रे इनायत उनकी
आशिक़ी जो है हमारी खस्ताहाल की तरह।
दिल,गुर्दे,फेफड़े फड़फड़ातें हैं देख कर उन्हें
ज़ज्बात हो जातें हैं बेकाबू बवाल की तरह।
आँखें तो हो जातीं हैं मालामाल दिदार करके
और बाहें रह जाती हैं खाली,कंगाल की तरह।
औकात भी देख लिया करो अजय तुम अपनी
क्यों आ जाते हो ज़िंदगी में जंजाल की तरह।
-अजय प्रसाद
70
71
आईए एक दूसरे पे हम इल्जाम लगाएं
फ़िक्र है कितनी ज़रा अवाम को बताएं।
यही तो है सियासतदानों का सिलसिला
भला हम औ आप क्यों वंचित रह जाएं ।
ज्म्हुरियत पे करें जम कर भरोसा मगर
काम सारे उसके ही खिलाफ़ कर वाएं।
वक़्त के साथ चलना ज़रूरी तो नहीं है
क्यों न वक़्त से आगे हम निकल जाएं ।
हुकूमत तुम्हारी हो या फ़िर हो हमारी
बस फाएदे में जनता कभी न आने पाएं
-अजय प्रसाद
72
अरे भाई!न्यूज़ पढ़ न,चिल्लाता क्यों है
खामखाँ अवाम को यूँ डराता क्यों है ।
बोगस ब्रेकिंग न्यूज़ के बहाने दिनभर
एक ही बात बार बार दोहराता क्यों है ।
बिना विज्ञापनों के भी समाचार दिखा
हेडलाइंस में होर्डींग्स दिखाता क्यों है।
बेसिर-पैर की बातें ,फ़िज़ूल की बहस
हक़ीक़त कहने से भी कतराता क्यों है।
खोखली सच्चाई और झूठ की कमाई
आखिर तेरे हिस्से में ही ये आता क्यों है।
चैनेल बदल या बंद कर दे टीवी अजय
खालीपीली तू हम पर गुस्साता क्यों है।
-अजय प्रसाद
73
महफिल और मुशायरों की बात मत कर
मतलबपरस्ती में माहिरों की बात मत कर
जो करतें हैं मंचो पे मुहब्बत की नुमाईश
बुज़दिल ज़हीन शायरों की बात मत कर।
हुस्नोईश्क़ की जो करतें हैं ज़िक्र गज़लों में
आशिक़ मिज़ाज कायरों की बात मत कर।
मूंद कर आँखें डूबे रहते हैं जो आशिक़ी में
सिमटते हूए उनके दायरों की बात मत कर।
हक़ीक़त कहने में जो हिचकिचातें हैं यारों
ऐसे बे-अदब रंगे सियारों की बात मत कर
बड़े ही खुदगर्ज नामाकूल हो अजय तुम भी
बस अपनी कह, हजारों की बात मत कर ।
-अजय प्रसाद
74
लिखता वही हूँ जो मैनें झेला है
लफ्जों में लाचारी को उकेरा है ।
किसी और को नहीं यारों वल्कि
रोज़ खुद को ही गौर से पढ़ा है ।
हो गया हूँ मैं सादगी का शिकार
वक्त भी हाथ धोके पीछे पड़ा है।
शायद मिलती है खुशी खुदा को
उम्मीदों पर उसने पानी फेरा है ।
दिन से दो-दो हाथ करके अजय
रात औंधे मुँह बिस्तर पर गिरा है ।
–अजय प्रसाद
75
अपने ही घर में हूँ मैं बेघर सा
हो गया है दिल भी पत्थर सा।
देखता हूँ,सुनता हूँ खामोशी से
पड़ा रहता हूँ कोने में जर्जर सा।
था कभी गुलज़ार यारों मैं भी
आज़ दिखता हूँ मैं खंडहर सा।
गुजर रही ज़िंदगी जुगाड़ से अब
भटक रही भावनाएं दरबदर सा।
जाने क्यों ये सांसे हैं बेताब सी
आँखें रहतीं हैं क्यों मुन्त्ज़र सा
-अजय प्रसाद
76
आजकल वो निन्यानबे के फेरे में है
ज़िंदगी उसकी सवालों के घेरे में है।
सियासत में सितमगर भी अज़ीब है
कल तेरे दल था में तो आज मेरे में है।
मियाँ मजनूँ ईश्क़ में ज़रा संभल कर
ज़ज्बाते हुस्न अब संदेह के घेरे में है।
गरीब,किसान,नौजवान सब ठिक है
मगर रहनूमाई क्यों अभी अंधेरे में है ।
तुझ पर भरोसा करें कैसे अजय कोई
तेरी गज़लें तो इमानदारी के डेरे में है।
-अजय प्रसाद
77
मेरी बेबह्र गज़लों पे वाह वाह करता है
बस यूँ वो मेरी जिंदगी तवाह करता है ।
मैं फूला नहीं समाता उसकी तारीफों से
और इस तरहा वो मुझे गुमराह करता है।
ज़िंदा हूँ मैं ज़ुर्म के खिलाफ़ लिखने को
तो सोंचिये मेरी कितनी परवाह करता है ।
जब कभी बहकने लगता हूँ हुस्नोईश्क़ में
मुझें आईना दिखा कर आगाह करता है ।
याद रखता है अपने दुआओं में हर दिन
कितनी खुबसूरती से वो गुनाह करता है ।
जानता हूँ अजय तुझे मैं अच्छी तरहा से
बड़ी शिद्दत से शोहरत की चाह करता है।
-अजय प्रसाद
78
उसे अपनी गल्तियों का एहसास तो है
उसकी रहनुमाई में कुछ खास तो है ।
उठाता है कदम तो बेशक़ एहतियात से
मगर खमियाजा भुगतना भी रास तो है।
लाखों लोगों के दुआओं का असर हुआ
आजकल वो अपनो के आस-पास तो है।
डूबते सूरज से लेके सबक है रोज़ सोता
उसे वक्त के कायदे से होशोहवास तो है।
लाख इलज़ाम लगाते रहें आप उस पर
उसकी ईमानदारी पे सबको विश्वास तो है
मिल रहा है मुस्कुराकर ये अलग बात है
मगर अंदर अंदर वो बेहद उदास तो है।
-अजय प्रसाद
79
मेढकी को भी अब जुकाम हो रहा है
सब कुछ सलीके से निलाम हो रहा है ।
देखिए किस कदर खुश है खलनायक
मशहूर होने के लिए बदनाम हो रहा है।
आप सोंचतें रहें लोग क्या कहेंगे,मगर
हौंसलाअफजाई का इंतजाम हो रहा है।
जो जिस ओहदे पे है सियासत में यारों
हैसीयत मुताबिक दुआ-सलाम हो रहा है।
आप अजय की फ़िकर न करें जनाब
रोज़ उसका भी काम तमाम हो रहा है ।
-अजय प्रसाद
80
फूल और खार के बीच
जीत और हार के बीच ।
रिश्ता होता गहरा यारों
घृणा और प्यार के बीच ।
आजकल है मेल कहाँ
घर औ परिवार के बीच।
कौन महफ़ूज़ रहता है
गर्दनो-तलवार के बीच ।
अच्छा है खुद छोड़ गए
नाव मझधार के बीच ।
-अजय प्रसाद