बख्स मुझको रहमत वो अंदाज़ मिल जाए
पढ़े जो सभी शौंक से अल्फाज़ मिल जाए
सुनें जो हर कोई गौर से आवाज मिल जाए
आता नहीं मुझे यूँ रूठना मनाना मेरे खुदा
बक्श मुझको रहमत वो अंदाज़ मिल जाए
आता नहीं मुझे…………….
जाने क्या-क्या दिल में था बयां नहीं किया
आई जो बात लब तक दिल में छुपा लिया
डरता था मेरी बात को तवज्जो न दे कोई
ख्वाहिश रही हरदम ये हमराज मिल जाए
आता नहीं मुझे…………….
देखा कभी जो ख्वाब तो दिल मुस्कुरा देता
टूटा कभी जो ख्वाब उसे हंसकर भुला देता
धुन में रहा मैं मग्न मगर वो धुन नहीं मिली
गुनगुनाता ही रहा कहीं पर साज़ मिल जाए
आता नहीं मुझे……………
एक खेल मेरे साथ है ये मुकद्दर ने भी खेला
निभाई मैनें बहूतों से पर मैं अब भी अकेला
“विनोद”मेरे दिल में रही है एक आरजू सदा
लिखूं उसपे गजल अगर आगाज़ मिल जाए
आता नहीं मुझे रूठना………..
बक्श मुझको रहमत………….