बख्त के बोल
बख्त के बोल
भगमा भाणा पहर के, बोलै बिगड़े बोल।
तन-मन तो साध्या नहीं, रहा थोबड़ा खोल।।
संन्यासी कह आप नै, मोटा सै व्यापार।
बडणी गाडी मै फिरै, सुरक्षा दे सरकार।।
छुटै मोह-माया नहीं, करै घणे पाखंड।
बेच दवाई छा गया, पूरा यो उद्दण्ड।।
योग सिखावै देश नै, मन मैं राखै मैल।
भेष जनाना धार के, भरै नए नित फैल।।
रोग ग्रस्त खुद तो रहै, करै निरोगी लोग।
लालच मैं सै बावळा, देख्या तेरा योग।।
फिरै हिलाता पूंझड़ी, लीडर आगै रोज।
जिसनै योगी मानते, भोगै सारी मौज।।
सिल्ला तिकड़म जाळ मैं, आग्ये भोळे लोग।
इसकी मान के फसे, आज मनावैं सोग।।
-विनोद सिल्ला