बखूबी समझता हूँ
फसाने और हकीकत को मैं बखूबी समझता हूँ
आजकल की सियासत को मैं बखूबी समझता हूँ
कि यह सय्याद परिन्दों पर मेहरबाँ क्यों है इतना
अए ज़ालिम तेरी नीयत को मैं बखूबी समझता हूँ
तेरे दिल में छुपी नफरत को उजागर कर के रहूँगा
तेरी झूठी मोहब्बत को मैं बखूबी समझता हूँ
तेरे ज़ुल्मों पे कुछ सोचकर ही तो खामोश है ‘अर्श’
वक्त की नज़ाकत को मैं बखूबी समझता हूँ