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4 Nov 2024 · 1 min read

बख़ूबी समझ रहा हूॅं मैं तेरे जज़्बातों को!

बख़ूबी समझ रहा हूॅं मैं तेरे जज़्बातों को!
गुप्त न रख सका उन ख़ास मुलाकातों को!
पर उन मुलाक़ातों में छुपा ऐसा था ही क्या?
तोड़ने पर क्यूॅं हो आमादा हमारे विश्वासों को!

…. अजित कर्ण ✍️

1 Like · 26 Views
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