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25 Aug 2022 · 1 min read

बंसी का स्वर दो (भक्ति गीतिका)

बंसी का स्वर दो (भक्ति गीतिका)
××××××××××××××××××××××××××
(1)
नीरस है यह जगत कृष्ण इसको बंसी का स्वर दो
मधुर भाव रस रंग हमारे अंतर्मन में भर दो
(2)
हम आपस में रहें प्रेम से कृष्ण सुधा बरसाओ
कलुष हृदय में जमा हुआ जो सब बाहर कर दो
(3)
भोला-भाला हमें बना दो निश्छल मस्ती छाए
कपट नहीं किंचित भी आए देव देव यह वर दो
(4)
तन का क्या है रहे न रहे मिटना रही नियति है
आकर कभी न जाए ऐसा अंतर्नाद अमर दो
(5)
किसी प्रलोभन के सम्मुख हम मस्तक नहीं झुकाऍं
वैरागी हो भीतर से मन ऐसा भाव प्रखर दो
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””‘”‘”””””””
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451

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