बंशी बजाये मोहना
हरिगीतिका छंद
बंशी बजाये मोहना नव रस सुरीली गीत रे।
है बाँसुरी जादू भरी फैली जगत में प्रीत रे।
सुन बावली होने लगी कितना मधुर संगीत रे।
रसराज रसिया की हुई है आज देखो जीत रे।
बेला शरद की माधुरी बरसा अमृत बन शीत रे।
ये रात पूनम की सुहानी संग है मनमीत रे।
बंशी मधुर धुन में सुनाती प्रेम की सब रीत रे।
जब कर्ण में घुलने लगी हरने लगी मन पीत रे।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली