” बंध खोले जाए मौसम “
गीत
बंध खोले जाए मौसम ,
ले रहा आगोश है !!
ताप ठंडा धूप का है ,
रोज काँधे पर चढ़े !
दांत रजनी के बजे हैं ,
ओस कण मोती जड़े !
ऋतु ठिठुरती सी लगे पर ,
भर रही नित जोश है !!
खेत करवट हैं बदलते ,
रंग श्रम के है खिलें !
बाग में झूमें बहारें ,
मन लहर कर हैं मिले !
तृप्त करते जो धरा को ,
पा गये परितोष हैं !!
आग तापे रोज निर्धन ,
हैं धनी धन ओढ़ते !
हाथ में तकदीर लेकर ,
रेख टूटी जोड़ते !
नित नया संघर्ष पग पग ,
रोज ही उदघोष है !!
रूप निखरा है कहीं पर ,
गंध भी पसरी लगे !
याद बंजारिन कहीं पर ,
ओढ़ चूनरी है ठगे !
कुंज गलियों में भ्रमर भी ,
हो रहे मदहोश हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )