” बंधे बंधे से हम ” !!
समझे नहीं है गर ईशारे ,
रुठे लगे हो तुम !
बढ़ती गई है चाहतें बस ,
ले लो भले कसम !!
खेले कभी अठखेलियाँ हैं ,
रूप तेरे साथ !
और महकती गंध छूकर ,
चूमती है माथ !
हम ताकते हैं अनमने से ,
वही छटा हमदम !!
चाकर समय के पहर सारे ,
हुऐ दास तेरे !
अलकों से बांधा महक को ,
गयी भूल फेरे !
फिर सम्मोहन जगाया नयन से ,
बंधे बंधे से हम !!
घेरे बड़ें हैं लालसा के ,
चहो या ना चहो !
कब तक रहोगी मौन आखिर ,
कहो या ना कहो !
कब तक सँजोयेगें सपन हम ,
हुई आस बेदम !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास