बंधन
ज्यों बसती है जान किसी जादूगर की तोते में,
त्यों ही जान बसा करती है दादा की पोते में।
लाख भंवर दिन भर में जिनको डरा नहीं पाते है,
शाम ढले पोते की निश्छल हंसी पे मारे जाते हैं।
✍️ दशरथ रांकावत ‘शक्ति’
ज्यों बसती है जान किसी जादूगर की तोते में,
त्यों ही जान बसा करती है दादा की पोते में।
लाख भंवर दिन भर में जिनको डरा नहीं पाते है,
शाम ढले पोते की निश्छल हंसी पे मारे जाते हैं।
✍️ दशरथ रांकावत ‘शक्ति’