बंद पड़ीं है लेखनी
बंद पड़ीं है लेखनी, मूक हुए सब भाव।
हर पल खलता है मुझे, केवल यही अभाव ।। १
दहक रही है ज़िन्दगी, जैसे जले अलाव।
मेरे अंदर घुट रहे, मेरे सारे भाव।। २
हे!कविता मुझको लिखो, आओ मन के गांव ।
फिर से पाऊँ मैं वहीं, शीतल निर्मल ठांव।।३
मन के भावों को मिले, फिर से नवल प्रभाव।
छंद बद्ध होने लगे, कविता का घेराव।। ४
कविता तुम मुझको चुनो,भर दो सारे घाव ।
हृदय कुन्ज आकर बसो, कर दो दूर तनाव।। ५
कविता सरिता सी बहो,सागर सा गहराव
जब तक मैं हूँ तुम रहो,लिए सुगंधित भाव ।।६
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली