बंद घरों में सिमट गए सारे
देखा नही खुला गगन,
बंद हो रहे है आँगन,
बना ली ऊँची ऊँची इमारतें,
भूल गए करना हम इबादते,
दम घुटती यह सांस,
कम हो रहा है विश्वास,
शांति नही अब पास,
बची नही कोई आस,
विलासिता के हुए दास,
भाग रहे पाने को विनाश,
गुजर रहे यूँ ही दिन मास,
खुश हो रहे रचाकर रास,
अभी समय है मोड़ लो कदम,
भारतीय संस्कृति का दिखा दो दम,
कुछ स्मरण कर लो महा पुरुषों का,
याद कर लो कुछ उन गुजरे वर्षो का,
सुबह की शुरुआत बोलकर राम नाम,
पसीना बहाकर करते थे अपना काम,
खुश था हर चेहरा,
सबसे था नाता गहरा,
फिर आया बदलाव का दौर,
प्रतिस्पर्धा का हुआ एक भौर,
धीरे धीरे बदल गए अपने,
उड़ने लगे चुनने लगे सपने,
धरा कम लगी पड़ने,
जनसंख्या लगी बढ़ने,
छुप गए गगन और तारे,
बंद घरों में सिमट गए सारे,
।।।जेपीएल।।।