बंदिश
आइये फिर से उस मुद्दे पर बातेंं करेंं जिस पर बार-बार बातेंं होती है, तकरारेंं होती है,चर्चाएँँ होती है, और जब पानी सिर से ऊपर गुजर जाता है तब, सब की जुबान पर लग जाती है बंंदिश!!!
बहुत बार औरतोंं को लेकर अत्याचार पर लगाई गई रोकोंं पर देश मेंं माहौल कभी राजनितिक,कभी सामाजिक,कभीआम बहस का एक मुद्दा बन जाता है। हालिया आई फिल्म “पिंंक”मेंं लडकियोंं की आजादी पर लोगोंं की जो घटिया सोच है उस पर कडा प्रहार किया गया है।उनके रहने,खाने,”पीने”,कपडे पहनने पर भी तो लगा दी जाती है बंंदिश!!!
“समाज” तीन शब्द मगर अपनेआप मेंं इतना प्रभावशाली कि लोगोंं पर बुरी तरह हावी रहता है।हर जाति ,हर वर्ग,हर धर्म का अपना-अपना समाज होता है मगर सभी समाजोंं मेंं एक समान जो बात होती है वो है औरतो पर बंंदिश!!!
समाज के बहुत सारे ठेकेदार औरतोंं पर खुले या छोटे कपडे पहनने का गाहे बगाहे रेप के कारण होते है बताते रहते है।जब पुरुष तय कर सकता है कि वो क्या पहने तो फिर वही क्योंं यह तय करना चाहता है की औरतेंं क्या पहने? सिर्फ और सिर्फ औरतोंं पर ही क्योंं कपडो को भी लेकर लगा दी जाती है बंंदिश!!!
हमारे देश के मुकाबले यूरोपीय देशोंं मेंं रेप की घटनाएँँ कम होती है।वहाँँ औरतेंं मन मुताबिक कपडे पहन सकती है। चाहे वो छोटे ही क्युँँ ना हो।दिमाग मेंं सवाल यह उठता है क्या वहाँँ के पुरुषोंं पर रेप ना करने की लगी होती है बंंदिश!!!
एक दोस्त है लंंदन से उन्होनेंं पूछा खुद को सैफ महसूस करती हो हाँँ कह दिया पर सोचने लगी क्या सच मेंं ? उन्होनेंं यह भी बताया की वहाँँ पर औरतोंं की इज्जत होती है जो यहाँँ हमारे देश की औरतोंं को कम ही नसीब है।उनसे बातचीत मेंं यह जानकारी मिली अगर कोई स्त्री सेक्स के लिए राजी ना हो तो जबदस्ती नही की जाती संंबध सहमति से बनाये जाते है और हो सकता है वहाँँ रेप की घटनाओंं की वजह भी यह है।और इसमेंं कानून भी एक बडी भूमिका निभाता है ।”सख्त कानून “की हमारे देश मेंं बहुत जरुरत है।और भी विस्तार से लिखना चाहती हूँँ मगर हमारे देश मेंं सेक्स को लेकर खुलकरबोलने पर भी तो लगी हुई है। बंंदिश!!!
देश के कई नामी गिरामी मंंदिरोंं और मस्जिदोंं मेंं औरतो के प्रवेश को लेकर भी रोक लगी हुई है।जो अब एक आंंदोलन के बाद कम हो रही है किस मंंदिर मेंं कब और किस समय जाना चाहिए यह औरतोंं को ज्यादातर पता होता है।हिंंदुस्तानी औरतेंं स्वभाव से ज्यादातर धार्मिक होती है।समाज उनपर फिर भी क्योंं लगाता ही जाता है बंंदिश!!!
उत्तर प्रदेश भी कमाल का प्रदेश है वहाँँ औरतेंं शादी मेंं बारात मेंं नही जा सकती वजह पता नही थी पूछने पर जवाब पाती पंंरपंंरा नही है। बचपन मेंं बडा बुरा लगता था जब गाँँव शादी मेंं जाते थे और बारात मेंं नही जा पाती थी।भाई,पिता,चाचा सब जाते।बालमन समझ नही पाता था हम क्योंं नही जा रहे हम पर तो लगी हुई थी पंंरपराओंं की बंंदिश!!!
सालोंं बाद एक मित्र है यूपी से वहाँँ के स्कूल के प्रिंंसिपल है। जानना चाहा अब माहौल कैसा है कुछ बदलाव है या नही पता चला पंंरापंंरा बदस्तूर जारी है कुछ-कुछ बदला है पर नाम मात्र को ।आश्चर्य तो तब हुआ जब प्रिंंसिपल साहब ने इसे वाजिब ठहराया।लगा मानसिकता नही बदल सकती भले ही कितने ही पढ लिख जाय ।सोच वही आकर ठहर जाती है जहाँँ पर लग जाती है बंंदिश!!!
जीवन भर पैदा होने से लेकर मरने तक ना जाने औरतोंं को झेलनी पडती है कितनी ही बंंदिश!!!
पूरे जीवन हमारे आस-पास सिर्फ घूमती रहती है ।एक अनचाही बंंदिश!!! ही बंंदिश!!!
#सरितासृृजना