बंदिशों का प्यार
हजारों बन्दिशों में भी
हम तुझे याद करते थे
हज़ारों पहरों में भी हम
आंखों के इसारे ही सही,
पर बात किया करते थे।
अब न कोई बन्दिशें हैं
अब न कोई पहरे हैं
तुम वहाँ ठहरे हो
और हम यहाँ ठहरे हैं।
©”अमित”
हजारों बन्दिशों में भी
हम तुझे याद करते थे
हज़ारों पहरों में भी हम
आंखों के इसारे ही सही,
पर बात किया करते थे।
अब न कोई बन्दिशें हैं
अब न कोई पहरे हैं
तुम वहाँ ठहरे हो
और हम यहाँ ठहरे हैं।
©”अमित”