बंदिशें
बंदिशे (स्वैच्छिक )
बंदिशे काम न आयीं, जमाने की यारों,
काफिले प्यार के फिर , राहों में सजने ही लगे,
कमबख़त ईश्क उनका, इस कदर परवां चढ़ा,
भंवरे कलियों पर देखो कैसे मंडराने ही लगे|
साजिशे नाकाम तेरी मलिकाये हुस्न,
कुंवारे लौट फिर घर को जाने ही लगे|
तमन्ना ईश्क की है, तू जलवा दिखा तो सही,
मजनूं गुलाबों संग प्यार जताने ही लगे|
🥰🥰🥰🥰
डॉ कुमुद श्रीवास्तव वर्मा ‘कुमुदिनी’ लखनऊ