बंदर बांट राष्ट्रीय पुरस्कारों की …
यह राष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण सिर्फ एक धोखा है ,
छलावा है ।यह बंदर बांट के खेल से कम नहीं ।
सरकार ने इनकी गरिमा मिट्टी में मिला दी है ।यहां
पूर्ण रूप से पक्षपात होता है ।जिसकी ऊपर तक
ऊंची पहुंच है उसकी ही झोली में जाकर गिरता है
यह राष्ट्रीय पुरस्कार।किसी उम्मीदवार में कायदे से
योग्यता ,योगदान और अन्य विशेष सेवाओं के
अतिरिक्त कुछ और भी देखा जा सकता है ।
उच्च चरित्र और देशभक्ति ! यह बहुत अहम गुण
है मनुष्य के जीवन में ।जिनको नजरंदाज कर दिया
जाता है। जिसका परिणाम यह है की गलत उम्मीदवार तक पहुंच जाता है राष्ट्रीय पुरस्कार ।और
कुछ तो ऐसे अहंकारी है जरा जरा सी बात पर पुरस्कार वापिस करने की घोषणा कर देते है।यह वास्तव में ऐसा करते हैं या नहीं यह तो भगवान जाने !
और कुछ तो राष्ट्रीय पुरस्कार लेते ही राष्ट्र के खिलाफ ,
उनके महान देशभक्तों पर ही जहर उगलना शुरू कर n
देते हैं।क्या ऐसे लोग राष्ट्र के किसी भी सम्मानिय
पुरस्कारों के योग्य हैं ?
मगर पता नही सरकार का पुरस्कार वितरण
का मापदंड हैं। मुझे नहीं लगता यह किसी कसौटी
पर परखकर किसी व्यक्ति को दिया जाता होगा ।
कहा न ! जिसकी लाठी उसकी भैंस !
तभी तो ऐसे में कई सच्चे और योग्य उम्मीदवार
पिछड़ जाते हैं।इस बार भी जो साधारण लोग शामिल
किए गए सब दिखावा है।एक दो को पद्मश्री से
नवाज का महज प्रभाव जमाने की बात है।
ना जाने यह भेदभाव कब तक चलेगा ?
आखिर यह पुरस्कारों की बंदर बांट कब खत्म होगी ?