बंदरबाँट
बंदरबाँट
अपने साहित्यकार पिता जी के नाम ट्रस्ट बनाकर पुरस्कार देने का निर्णय जब गोयल जी ने किया था उस समय उन्हें साहित्य जगत की धांधलियों का अंदाज नहीं था। धीरे-धीरे समय के साथ तस्वीर साफ होने लगी।
पर एक बात उन्हें पता थी कि नए लोगों को साहित्य की समझ नहीं है और पुराने लोगों के पास समय नहीं है। फिर पुरस्कार के लिए आमंत्रित कृतियों को पढ़े कौन?
जब यह बात उन्होंने अपने साहित्यकार मित्र गुप्ता जी के सामने रखी तो उन्होंने कहा-
“क्यों चिंता करते हो?” गोयल जी!
“सब हो जाएगा, कोई बहुत बड़ा काम नहीं।”
मैं कुछ ऐसे वरिष्ठ लोगों को जानता हूँ जो आपकी मुश्किल का हल निकाल देंगे। आप उनको अपनी निर्णायक मंडली में रख लीजिए।
“आप कह रहे हैं तो ठीक है रख लेता हूँ। आप मुझे नामों की सूची भेज दीजिए।”
गुप्ता जी द्वारा भेजे गए स्वनामधन्य नामों की सूची प्राप्त होते ही गोयल साहब समिति ने पुरस्कार समिति के सदस्यों और पुरस्कार के लिए निश्चित की धनराशि की घोषणा कर दी। आमंत्रित की गई कृतियों को समिति के सदस्यों के पास मूल्यांकन हेतु प्रेषित कर दिया गया और समिति ने एक सप्ताह में ही पुरस्कृत होने वाले कवियों और लेखकों की सूची तैयार कर गोयल साहब को दे दी। उस सूची में अधिकांश लोग ऐसे थे जिनकी पुस्तकें ही प्रकाशित नहीं हुई थीं। जब गोयल साहब ने पूछा कि इन महापुरुषों ने तो अपनी कृतियाँ भेजी ही नहीं थीं तो इनका नाम आप लोगों ने पुरस्कृत होने वाले साहित्यकारों की सूची में कैसे रख दिया तो निर्णायक मंडली ने बहुत ही प्यारा-सा जवाब उन्हें भेजा-
“अरे गोयल साहब! ये अपने पुराने मित्र हैं , बहुत अच्छा लिखते हैं? बस ,इनकी कोई पुस्तक अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है।हमने उनको बता दिया है कि जब भी अपनी पुस्तक प्रकाशित कराएँ तो पुस्तक का नाम वही रखें जो हमने यहाँ पुरस्कृत साहित्यकारों और उनकी पुस्तकों के नाम की सूची में उनके नाम के साथ लिखे हैं। पुस्तक प्रकाशित होते ही आपको रिकाॅर्ड के लिए पुस्तक आपको उपलब्ध करवा दी जाएगी।”
🖋डाॅ बिपिन पाण्डेय