बंटवारा
कहानी
बंटवारा
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तीन बेटों और एक बेटी के पिता राम प्रसाद वैसे तो खुश थे, बच्चे अपने अपने हाथ पैर पर हो गये थे। दो बेटे सरकारी नौकरी में थे,बेटी का रिश्ता भी अच्छे घर में हो गया था, छोटा बेटा खेती बाड़ी के साथ घर में ही एक छोटी सी दुकान चलाता और पिता की देखभाल करता था। राम प्रसाद का मन भी शहर में नहीं लगता था, इसलिए कभी जाते भी थे तो दो दिन में ही वापस आ जाते थे।
श्याम पिछले तीन दिनों से अपने पिता को चिंतित देख रहा था, उसकी पत्नी ने भी श्याम से इसकी चर्चा की। न चाहते हुए भी आज उसने पूछ ही लिया कि क्या बात है पिता जी , आप कुछ परेशान हैं?
नहीं बेटा! ऐसी कोई बात नहीं है। श्याम की बात को टालते हुए राम प्रसाद ने कहा
फिर क्या बात है पिता जी?आपकी बहू कह रही थी कि आप खाना भी ढंग से नहीं खा रहे हैं? तबियत तो ठीक है न। कोई दिक्कत हो तो बताइए डा. के यहां ले चलूं।
अब श्याम की बात सुनकर रामप्रसाद ने बताया कि उसके दोनों भाई चाहते हैं कि तुम तीनों का बंटवारा कर दूं, ताकि मेरे मरने के बाद तुम तीनों में आपसी विवाद न हो।
लेकिन पिताजी आखिर दोनों भाइयों को परेशानी क्या है? खेती बाड़ी मैं करता हूं, जितना जरुरत होता है वे दोनों गल्ला ले ही जाते हैं। अपने लिए कभी कुछ मांगता नहीं, आपके लिए भी मैंने कभी उन दोनों से कुछ नहीं कहा, यथा संभव आपकी देखभाल और जरुरतें पूरी ही करता हूं।
फिर भी आपको लगता है कि मैं पुत्र का फ़र्ज़ निभा नहीं रहा तो जो फैसला आप करना चाहें, मुझे मंजूर है, मगर फिर आपकी देखभाल कौन करेगा,आप किसके साथ रहेंगे? क्या अपना भी बंटवारा कर देंगे।
राम प्रसाद मौन रह गए।
श्याम फिर बोला – अब समझ में आया कि वे दोनों सोचते हैं कि कहीं पूरे घर पर मेरा कब्जा न हो जाए।आज भी अगर मैं घर पर हूं तो सारी जिम्मेदारी, रिश्तेदारी भी मैं ही निभाता हूं। बावजूद इसके यदि वो दोनों चाहते हैं तो आप दो हिस्सों में बंटवारा कर दीजिए। मैं अलग मकान लेकर रह लूंगा, आपको भी अपने साथ ही रखूंगा। उन दोनों के साथ कुछ भी दिन नहीं रहने दूंगा। हां एक बात और दीदी का भी हम सबके बराबर अधिकार है, इसलिए बंटवारा तीन हिस्सों में होगा। मुझे अपने लिए केवल आप चाहिए। जमीन जायदाद नहीं, आप हमारे साथ रहेंगे तो जमीन जायदाद की समय आने पर व्यवस्था कर लूंगा।
राम प्रसाद सन्न रह गये। उन्होंने निर्णय कर लिया। दोनों बेटों और बेटी को तुरंत बुलाया।
अगले दिन जब सब आ गये तो राम प्रसाद ने जब श्याम के फैसले से अवगत कराया, तो दोनों भाई शर्म से सिर नहीं उठा पा रहे थे, उनकी बहन भी छोटे भाई के फैसले के साथ हो गई।
राम प्रसाद के बड़े बेटे करण ने हिम्मत जुटाकर कहा मगर पिताजी आपको हम तीनों के साथ तीन तीन महीने रहने में क्या हर्ज है?
बिटिया रश्मि फट पड़ी पापा कोई वस्तु हैं क्या?जो कुछ है उन्हीं का है । मैं तो कहती हूं कि अच्छा होगा कि पापा को अपनी सारी सम्पत्ति जमा पूंजी किसी वृद्धाश्रम को दे देनी चाहिए, हम सबको कुछ देना ही नहीं चाहिए।
अब राम प्रसाद के दूसरे बेटे रमेश ने कहा-दीदी ठीक कह रही भैया, आपके बहकावे में मैं भी आपकी हां में हां मिलाने का दोषी बन गया। श्याम भी तो हमारा भाई है। पापा हम लोगों के साथ शहर में सहज नहीं रह पाते। आखिर सब वो ही तो देखता है। हमसे कभी कुछ मांगता भी नहीं, हमारे हिस्से की जिम्मेदारी भी वो छोटा होकर निभा रहा है और हम बड़े होकर भी नीचता कर रहे हैं। मेरा निर्णय है कि सब कुछ श्याम के अधिकार में होना चाहिए। हम बेटे का फ़र्ज़ नहीं निभा पा रहे हैं तो हम अधिकार की बात करने का हक़ भी नहीं रखते।
श्याम की आंखों में आंसू थे वो बोला मैं यहां रहकर किसी का हक मारने की नियत नहीं रखता। हम सब बराबर हैं, सभी का हक समान है, लेकिन जीवित व्यक्ति का बंटवारा समझ से परे है। आप दोनों सब कुछ बांट लीजिए। बस पिता जी को मेरे हिस्से में डाल दीजिए।
आखिरकार राम प्रसाद ने भी श्याम का पक्ष लिया तो करण उनके पैरों में गिर कर रोने लगा- मुझे माफ कर दो पापा मैं वादा करता हूं कि मेरे जीते जी इस घर परिवार का बंटवारा कभी नहीं होगा।
राम प्रसाद ने करण को उठा कर गले लगा लिया।तब रश्मि ने माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से कहा मगर मुझे तो अपना हिस्सा चाहिए ही।
जरुर बहन! सब कुछ तेरा ही है, जब चाहे अधिकार से ले लेना, हम तीनों भाई एक शब्द भी नहीं कहेंगे।
हां भैया! सब कुछ तो मेरा ही है, आज जो आपने मुझे दे दिया वो हर बहन के नसीब में नहीं होता। आप सब ऐसे ही खुश रहें। मुझे सब कुछ मिल जाएगा।
करण ने श्याम को गले लगा कर बंटवारे का पटाक्षेप कर दिया।
सबकी आंखों में ख़ुशी के आंसू तैर गये और रामप्रसाद अपने भाग्य पर इतराते हुए ईश्वर का धन्यवाद कर रहे थे।
रश्मि अपनी भाभियों संग भोजन के इंतजाम में लग गई, आज उसे अपने पापा के चेहरे पर असीम आत्मिक सूकून नजर आ रहा था।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित