बंजर जीवन
क्या तुम्हें मेरा चेहरा याद है?
मैं अपना चेहरा भूल गया हूं
या शायद
मैं अपना चेहरा खो दिया हूं
मेरा चेहरा ऐसा नहीं था
मेरे चेहरे पर आत्मविश्वास था
प्यारा और मासूम था
मगर अब चेहरे पर कुछ नहीं है
सिर्फ विरान,बेख्वाब और बन्जर आंखें हैं
जलती हुई ललाट
और आंसुओं से भरी पलके है
अब यही मेरा चेहरा है
लेकिन यह मेरा चेहरा नही है।
——–अभिषेक द्विवेदी”नीरज”———