*फ्रेंचाइजी मिठाई की दुकान की ली जाए या स्कूल की ? (हास्य व्यंग्य)*
फ्रेंचाइजी मिठाई की दुकान की ली जाए या स्कूल की ? (हास्य व्यंग्य)
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वह बहुत उत्साह से भरे हुए थे । उनके साहबजादे अर्थात सुपुत्र भी उनके साथ थे। बोले “आपसे सलाह लेनी है ।”
मैंने कहा “क्या रिश्ते की बात चल रही है तथा लड़की वालों के घर परिवार के बारे में कुछ पूछना चाहते हैं ? ”
वह बोले “यह शुभ अवसर तो अभी थोड़ा रुक कर आएगा। इस समय तो हम यह पूछना चाहते हैं कि अपने पुत्र को मिठाई की दुकान खुलवाएँ या कोई स्कूल खोला जाए ?”
ऐसा असमंजस से भरा हुआ प्रश्न मेरे सामने कभी नहीं उपस्थित हुआ था। मैं स्तब्ध रह गया और वह धाराप्रवाह अपना प्रश्न मेरे सामने उपस्थित कर रहे थे ” देखिए भाई साहब ! मिठाई की फ्रेंचाइजी की बात चल रही है । उसमें भी एक दुकान काफी बड़ी चाहिए । सिक्योरिटी की कुछ धनराशि जमा करनी पड़ेगी । शोरूम सुंदर बनाना होगा और रोड अच्छी होना चाहिए । मिठाई की दुकान की फ्रेंचाइजी मुश्किल से ही मिल पाती है लेकिन हमारे क्योंकि संपर्क कई लोगों से है अतः एक मशहूर मिठाई की डीलरशिप उम्मीद है, मिल जाएगी । काम- धंधा मेरी नजर में तो ठीक है और बात भी सही है कि मिठाई हमेशा से लोग खाते हैं।”
मैंने कहा “अब मिठाई लोग कम खा रहे हैं क्योंकि डायबिटीज का चलन ज्यादा होता जा रहा है।”
वह बोले “ऐसी बात नहीं है ! डायबिटीज वाले छुप कर खाते हैं और बाकी लोग खुलकर खाते हैं।”
इस बात पर हम तीनों ही लोग हँस पड़े। वातावरण कुछ हल्का फुल्का हुआ तो भाई साहब ने दूसरा विकल्प सामने रखा ।
कहने लगे ” फ्रेंचाइजी स्कूल की आसानी से मिल रही है । उसमें थोड़ा निवेश ज्यादा करना होगा । जोखिम भी थोड़ा अधिक है लेकिन एक बार अगर धंधा चल गया तो आमदनी मोटी है । आपकी क्या राय है ?”
मैं चुप रहा । वह कहने लगे “लड़का तो स्कूल खोलना चाहता है । अब हमें भी किसी न किसी बिजनेस में तो उतारना ही है । या तो मिठाई की दुकान पर बैठेगा या फिर स्कूल खुलेगा ? वैसे और भी कई विकल्प हैं। जैसे ज्वेलरी – शोरूम खुलवा दिया जाए या रेडीमेड कपड़ों की अच्छी – सी दुकान खुल जाए ।”
बातचीत के क्रम को लड़के ने बीच में तोड़ा । बोला “मेरी राय तो स्कूल खोलने की है । यह एक उभरता हुआ व्यवसाय है और इसमें सफलता के भी काफी अच्छे चांस हैं। अगर हम एक अच्छे ब्रांड की फ्रेंचाइजी ले लें और उसके लिए काम करें तो मार्केट में संभावनाएँ बहुत व्यापक हैं। मेहनत करके हम अपने स्कूल – बिजनेस को काफी ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं । सबसे अच्छी बात यह है कि हमारे पास काफी बड़ी पुश्तैनी जमीन खेती की पड़ी हुई है ,जो अब लगभग बेकार है । उसमें स्कूल बड़ी आसानी से खुल जाएगा । पढ़ाई की जरूरत हमेशा बनी रहेगी । लोग अच्छे स्कूल में जाकर पढ़ना पसंद करेंगे भले ही इसमें थोड़ा पैसा ज्यादा खर्च हो जाए। हमारी दुकान भगवान ने चाहा तो बहुत अच्छी चलेगी । मुनाफा बढ़िया होगा । यह एक अलग बात है कि व्यवसाय चलने में दो -चार साल लग जाएंगे लेकिन एक बार अगर हमारे स्कूल ने आमदनी की दृष्टि से अपने पाँव जमा लिए तो फिर लाखों- करोड़ों का वारा- न्यारा होकर ही रहेगा।”
लड़के के इस ओजस्वी भाषण से उसके पिताश्री बहुत उत्साहित और प्रसन्न हो गये। उन्होंने बच्चे के सिर पर अपना आशीर्वाद का हाथ रख दिया और कहने लगे “अब बेटा किसी राय की आवश्यकता नहीं है । तुम स्कूल ही खोलो । लक्ष्मीजी की कृपा तुम्हारे ऊपर अवश्य होगी। बेटा ! चाचा जी के पैर छुओ और इनका भी आशीर्वाद लो।” इतना कहकर भाई साहब ने अपने सुपुत्र को मेरे चरणों की ओर इशारा करके आगे बढ़ने का आदेश दिया । आजकल चरण किसी के कौन छूता है ? लड़के ने मेरे घुटने से छह इंच दूर हवा में अपना एक हाथ रख दिया और यह मान लिया गया कि मैंने उसे आशीर्वाद दे दिया ।।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451