फौजी प्यार और जिंदगी
सोलह श्रृंगार कर सज संवर आई वो किसी और के
घर,
भूल कर अपनी दुनिया किसी और दुनिया में रंगने
लगी वो अब,
मिलने ही लगी थी जहां की खुशियां और अपनापन
उसे,
कि पल भर में उजड़ गया उसका यह खुशियों का
संसार
था पति उसका फौज में पर प्यार इससे बहुत करता
था,
लकिं देश की खातिर दूर इससे सरहद पर कहीं रहता
था
आऊंगा लौटकर दूंगा हर खुशी तुझे यह वादा करके
गया था,
रखकर ख्याल सबका तुम मायूस ना होना यह
कहकर गया था,
मुसकां चेहरे पे लेकर इंतज़ार में उसकी राहें तकती
थी,
किसी के आने की दस्तक पर सब छोड़ दरवाजे पर
जाया करती थी,
हर दस्तक में इक रोज़ दस्तक उसकी भी शामिल हो
गई,
पर उसकी आहट ना आकर तिरंगे में उसकी लाश आ
गई,
पता चला जब उसे तो आंखो में चमक उसके आ गई,
पर देखा जब उसे तो दिल उसका मायूस और बेसुध
वो खुद हों गई,
आया होश जब उसे तो बेरंग दुनिया उसकी हो गई,
सबको दिलासा देते देते वो खुद ही जीना भूल गई,
वादा किया जो अपने प्यार से जिंदगी उसे बना लिया,
करके दिल मजबूत अपने बेटे को भी फौज भर्ती के
लिए तैयार कर लिया,
पूरा देश भुला शहादत उसकी पर वो ना उसे भूल
पाएगी
यादों में उसकी जीकर वो इक मजबूत फौज्जन बन
जाएगी