फौजी की बंदूक
फौजी की बंदूक अगर माँ होता मेरे पास में।
भारत माँ के खातिर लड़ता फौजियों के साथ में।।
पापाजी से पैसे लेकर फौजी ड्रेस सिलवाता,
काँधे में बंदुक लगाकर मैं फौजी बन जाता,
सीमा पे जा बड़े मजे से मैं बंदुक चलाता,
दुश्मनों को खोजकर एक एक को सबक सिखाता,
पाक-चीन सब डरता देख बंदुक मेरे हाथ में।
भारत माँ के खातिर लड़ता फौजियों के साथ में।।
मुझे बहुत खुशी होती जो बढ़ाता देश की शान को,
निडर होके लड़ता मैं हथेली पर ले जान को,
तेरा भी मान बढ़ता ऊँचा करता तेरे नाम को,
वीर गति को पा जाता नमन कर हिंदुस्तान को,
शान से लहरता यूंही तिरंगा निले आकाश में।
भारत माँ के खातिर लड़ता फौजियों के साथ में।।
एक जवान शहिद हो गया समाचार जो सुनती,
व्याकुल होकर माँ तुम मुझको फोन लगाती,
तब तुम वहीं रोने लगती जब मुझसे बात न हो पाती,
फिर भी तुझे खुशी होती जब एक वीर की माँ कहलाती,
वीरों की माँ के आँसू नहीं आता है आँख में।
भारत माँ के खातिर लड़ता फौजियों के साथ में।।
-दीपिका कुमारी दीप्ति (पालीगंज पटना)