फैसला (लघु कथा)
फैसला (लघु कथा)
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“उच्च शिक्षा के लिए एडमिशन फार्म ले आई हूँ। अब फीस जमा करने की आखिरी तारीख चार दिन बाद है ।” रश्मि ने अपनी माँ से जब यह कहा तो नीलिमा के पैरों से जैसे जमीन ही खिसक गई ।
उसने पति की तरफ आँख उठाकर देखा । पति अनमोल भी परेशान हो उठे। लेकिन फिर साहस जुटाकर नीलिमा ने ही अपनी बेटी से कहा “रश्मि ! हम तुम्हारी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते । ढाई लाख रुपए सालाना खर्च करना हमारे लिए संभव नहीं है ।”
“लेकिन क्यों ? अभी तक तो यही बातें चल रही थीं. …”
रश्मि की बात को बीच में ही काटते हुए पिता अनमोल का उत्तर था ” बेटी !तुम्हारे भाई राजेश की शादी में दावत में कम से कम 12 लाख रूपए का खर्चा आएगा । हमारे पास तो इतना भी नहीं है। जमीन गिरवीं रखकर कर्ज लेना पड़ेगा। तुम्हारी आगे की पढ़ाई अब नहीं हो पाएगी।”
” मगर जब पैसा नहीं है तो इतनी शाही दावत करने की क्या जरूरत है?”
” तो क्या पूरे शहर में नाक कटा दें ? ….यह हमारा आखिरी फैसला है।” पिता ने कड़कदार आवाज में अपना फैसला सुनाया और चले गए ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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