” फेस बुक की बातें “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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विचारों की असमानता मित्रता की नींव को हिला के रख देती है ! इसके आभाव में सहयोग और सामंजस तो पनप ही नहीं सकती है मिलना तो दूर रहा ! हम अब इतने परिपक्व होते जा रहें हैं कि दूसरे की बातों को ना पढते हैं और ना समझते हैं ! बस अपनी कडुवी बातों और व्यक्तिगत प्रहारों से लोगों को आहत करते हैं ! श्रेष्टता तो तभी समझी जाती है जब आप विषयों को ना छोड़ें और अपना तर्क और विचार को व्यक्त करें ! मित्रता जब की है तो निवाहने की कला होनी चाहिए ! मित्रता में समर्पण की भावना होनी चाहिए ! कृष्णा सुदामा को नहीं भूल पाए ! पर आज उन परम्परों को दरकिनार किया जा रहा है ! हम क्यों ना उच्चतम शिखर पर पहुँच जाएँ ! परंच यदि अज्ञानता आप में घर कर गयी है तो आप अधूरे हैं ! हो सकता है आपकी उपलव्धियों में हमें शंका होने लगे ! आपकी भाषा ,आपके विचार ,आपकी सरलता इत्यादि ही बताएगी कि आप स्वयं उच्चतम शिखर पर पहुंचे हैं या आपको पहुँचाने में किसी और असामाजिक तत्वों का योगदान तो नहीं रहा ?……ये सारी बातें आपकी लेखनी से मिलती है !
फेस बुक में विचारों का ही आदान -प्रदान होता है ! सहयोग और मिलन तो दुर्लभ है फिर हम
अपने विचारों को कुंठित क्यों करें …..?
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
एस० पी ० कॉलेज रोड
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत