Festival Of Lights Goa Parra Village
फेस्टिवल ऑफ लाइट्स ( रौशनी का त्यौहार )
गोवा में हर साल दिवाली के अवसर पर ’रौशनी का त्यौहार’ एक अनूठे अंदाज़ में मनाया जाता है। यहां की भाषा एवम् संस्कृति भले ही भिन्न है। लेकिन दिवाली का उत्सव उनके अपने अंदाज़ में जीवित है। उनका अपने हाथों से लालटेन बनाना एवम् उनमें रंग – बिरंगी चित्रकारी के साथ अदभुद कलाकारी का वर्णन करने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं हैं। एक कतार में दूर दूर तक बिखरा प्रकाश अदभुद एवम् भव्य लगता है।
लालटेन में पौराणिक कथाएं उनकी कृतियों में मुख्यतया देखने को मिलती हैं। संपूर्ण रामायण, महाभारत के दृश्य आंखों के सामने चलते हैं। भगवान् श्री कृष्ण की लीलाएं लगभग हर प्रतियोगी की कृतियों में रहती हैं। जैसे भगवान श्री कृष्ण का कारागार में जन्म। कालिया मर्दन। द्रौपदी वस्त्र हरण। पांडव कौरव युद्ध। गीता का उपदेश। नेहाली नर्वेकर ( एक प्रतियोगी) ने तो एक लालटेन को तुलसी के गमले का आकार दिया था। इन्होंने भी पौराणिक कथाओं से जुड़े दृश्य रचे थे। जैसे समुद्र मंथन का दृश्य। इस तरह के दृश्यों को बारीकी से उकेरा जाता है।
कई प्रतियोगी जिनसे मैंने बात की उनके अनुसार वो पिछले कई वर्षो से लगातार इस प्रतियोगिता में शामिल होते रहे हैं। इनमें से एक प्रतियोगी जो कि विगत बारह वर्षों से प्रतियोगिता में हिस्सा लेते आ रहे हैं। कई बार विजेता भी रह चुके हैं। इस बार भी नितिन केरकर जी ने अपनी कृति में महाभारत के दृश्यों को अपनी अनूठी कला से एक लालटेन में समाहित किया था।
गोवा में अलग –अलग जगह पर अलग – अलग समय दिवाली के अवसर पर पूरे गोवा में इसी प्रकार ’रौशनी का त्यौहार’ लालटेन लगाकर मनाया जाता है। यह एक तरह की प्रतियोगिता होती है। यहां के लोग कई महीने पहले से इस प्रतियोगिता हेतु सज्ज होते हैं। इस प्रतियोगिता को आकाश कंदील कॉम्पटीशन ऑल गोवा के नाम से जाना जाता है। यह काम सरकार और समस्त गोवा निवासी मिलकर करते हैं। इस कार्यक्रम की मुख्य शोभा यहां के माननीय मुख्य मंत्री एवम् अर्जुन रामपाल ( एक्टर) जी कार्यक्रम में उपस्थित थे।
इस प्रतियोगिता की महत्ता यह है कि इसमें हर धर्म के लोग एकजुट होकर एक लाइन में खड़े होकर इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। बहुत ही सुंदर एवम् भव्य आयोजन किया जाता है। एसपी, कलेक्टर, मंत्री इस आयोजन का हिस्सा होते हैं। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है।
युवाओं को यदि अवसर मिले कला के प्रदर्शन का तो प्रतियोगिता में चयन करना असंभव हो जाएगा। हर जगह, हर वस्तु में हम कला को अपनी कोमल भावनाओं के साथ उन्हें एक सुंदर आकार दे सकते हैं। कलाएं लोगों की आत्मा में रची बसी रहतीं हैं। बस देर है तो उन कलाओं को बाहर निकालने की। हीरे की परख एक जौहरी से बेहतर कोई नहीं कर सकता है।
कलाकार आप सब होते हैं एवम् जौहरी कोई और नहीं ’प्रतियोगिता’ को ही हम मान सकते हैं। हम सबके भीतर एक कला होती है जो समय, स्थान, और साथ न मिलने की वजह से कला काल का ग्रास बनकर रह जाती है। फिर कभी अंकुरित नहीं होती है। कलाओं का महत्व तभी है जब कला का उचित सम्मान हो।
_सोनम पुनीत दुबे