“ फेसबूक बन गया ज्ञान की गंगा “
“ फेसबूक बन गया ज्ञान की गंगा “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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फेसबूक को एक अद्भुत गंगा माना गया है जिसकी धारा अविरल तुंग शिखर से निकल कर आवध गति से बढ़ती हर अवरोधक कंटकाकीर्ण मार्ग को चीरती अपने लक्ष्य की ओर चलती रहती है ! छोटी बड़ी जल की धारायें और सहायक नदियाँ इनमें समाहित होती हैं ! फेसबूक के क्षितिजों में भी अनेक तारे छिपे हैं जिनकी प्रतिभाओं की रोशनी से सारा ब्रह्मांड जगमगाने लगता है ! कोई महान लेखक, तो कोई अद्भुत कवि ,जिनकी लेखनियों से “सत्यम ,शिवम और सुंदरम “का आभास मिलता है ! विश्व की 6809 भाषाओं का दर्शन होता है ! संस्कृति ,रहन -सहन ,रीति -रिवाज़ और भेष -भूषा का भी अवलोकन करते हैं ! शिक्षक ,साहित्यकार ,गायक ,संगीतकार ,चित्रकार ,अभिनेता ,अधिवक्ता ,व्यंगकार ,चिकित्सक ,खिलाड़ी इत्यादियों के योगदानों से फेसबूक की निर्मल धारा बहती है ! इनके योगदानों से ही हमारा फेसबूक निखरता और चमकता है ! इनकी कृतिओं से सारे लोग तृप्त हो जाते हैं ! इनके सानिध्य से हमारा व्यक्तित्व निखरने लगता है ! ज्ञान गंगा की अविरल धाराओं से हम सब दिन सिक्त होते रहते हैं ! लेखनी को पढ़कर ,कविताओं को सुनकर ,गायन और संगीत ,अभिनय भंगिमा ,दिव्य चित्रकला ,राजनीति समालोचना ,निष्पक्ष पत्रकारिता ,व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति ,सेहत की जानकारी इत्यादिओं का गहन अवलोकन और चिंतन करके हम निखरने लगते हैं ! एक सकारात्मक प्रतिक्रिया और सटीक समालोचना से हमारे कुम्भ स्नान हो जाते हैं और जन्म -जन्म के संदेहों और जिज्ञासाओं का बैतरणी पार हो जाता है !उनकी बातें तो जुदा है जो इस पवित्र ज्ञान गंगा तक पहुँच कर इसमें डुबकी ना लगाते हैं !“ जिन खोजा तिन पाइया ,गहरे पानी पैठ ! मैं बपुरा बुड़न डरा ,रहा किनारे बैठ “ अब हम कुछ लिखेंगे नहीं ना पढ़ेंगे और ना ज्ञान गंगा के पास पहुँचने का प्रयास भी ना करेंगे तो हम धनुर्धर कैसे बनेंगे ?“गंगा का लक्ष्य है सागर से मिलना ,ऊँचे -नीचे राहों से उसको क्या करना !”ज्ञान गंगा की अविरल धारा इसी तरह बहनी चाहिए ! हमें अकर्मण्यताओं की भंगिमाओं को नज़र अंदाज़ करनी चाहिए ! कई लोग तो अपने काले कम्बलों को ओढ़े कई विचित्र दूषित नालों में नहा लेते हैं ! पर ज्ञान गंगा सिर्फ फेसबूक की पवित्र धाराओं में ही निहित है !ज्ञान गंगा के अमृत को बहाने बालों को भी विशाल हृदय वाला होना ही चाहिए ! श्रेष्ठ तो गंगा भी हैं पर वह समदर्शी हैं ! अपनी शीतल धारा से सबका कल्याण करें ! सबके साथ जुड़े रहें ,सबका सम्मान करें और सबसे दो बातें भी करें ! अपने धुनों पर सिर्फ हम नाचेंगे तो लोग हमसे किनारा कर लेंगे ! यदि हमें कुछ नई बातें सीखनी है तो फेसबूक के ज्ञान गंगा में अनवरत गौते लगाने ही पड़ेंगे ! हमें शालीनता ,शिष्टाचार और मृदुलता के मंत्रों को प्रयोगात्मक कंठस्थ करना होगा तभी हमें फेसबूक गंगा हमें निर्मल बनाएगी !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत