फूल
फूल
हरे रंग की पत्तियों में,
खिलता गुलाबी, लाल रंग…
महक छोड़ता लोगों को आकर्षित करता-
-सांझ होते ही मुरझाता-
-डालियों से झरता धरा पर बिखरता।
मृदा में समाहित हो खुद मिटता,
कुछ ही क्षण के लिए पर अपनी महक से लाखों को लुभाता।
शुचि के भाव नमन करते पुष्पों को…
जो मिटकर भी खुद को सभी दिलों में बसा जाते।
डॉ माधवी मिश्रा ‘शुचि ‘
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