फूल
हर बार
आता है वसंत
गर्मी,
वर्षा,
पतझड़ और फिर वसंत
अपने नियम से
बगिया में हर बार
खिलते हैं रंग-बिरंगे फूल
और कर देते हैं
बदरंग जीवन को
रंगदार और सुवासित
घर के चारों ओर
खिली फुलवाड़ी
को देख
हर्षित-आनन्दित
और पुलकित होता मन
सोचने पर विवश है कि
इन खिलते पुष्प-गुच्छों को
क्यों नहीं हुई
मुझसे
कभी
कोई शिकायत?
थाल भर फूल
चुन-चुनकर नित्य ही
अर्पण करती रही
उस अनित्य को
जिसका
यह सब कुछ है
इन फूलों को
क्यों नहीं हुआ आभास
मुझे घेरते बुढ़ापे का
क्यों नहीं ये
मुझसे रूठकर
चमकते-दमकते
युवा चेहरों से
अनुराग जोड़ते?
मुझे लगता है कि
इनका फूल होना ही
अच्छा है
कम-से-कम यह
मानव तो नहीं न हुए
तब कहाँ से होती इनमें
अवसरवादिता?